पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३२०

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अमिमलय] २७६ [तीसरा खंड ध्यान रहे, मौत का काल आनेतक कोमी नहीं मरता; और जब वह काल आ जाता है तो, चाहे जो करो, अस से कोई नहीं बचता । सहस्रों, लाखों आदमी है जो, महामारी या अन्य की बीमारियों के शिकार होते है, किन्तु धर्मयुद्ध में मत्यु आना तो अनोरवी हुतात्मता-अपूर्व भाग्य की बात है। जिस से भारत से फिरंगियों को भगाना या मार डालना हर भारतीय का कर्तव्य है।" यह अद्धरण भिन्न भिन्न समय में प्रकट हुने अवध तथा दिल्ली के घोषणा-पत्र के समान और अक घोषणा-पत्र से लिया गया है । जिसी प्रकार का अक नया घोषणा-पत्र दिल्ली ही के सिंहासन से घोषित किया गया था और भारतभर में प्रचारित हुआ था। सूदर दक्षिण के प्रदेश में भी बाजार में तथा सना में मिस घोषणा-पत्र की प्रतियाँ बहुतेरों के हाथ में दखि पडती थीं। वह घोषणा- पत्र यो था:- समस्त हिदु-मुसलमान बांधव गण | केवल धार्मिक कर्तव्य जान कर हम जनता के साथ हैं। जिस समय जो कोमी कायरता दिखायगा और पाजी अंग्रेजों के वचनों पर भोलेपन से विश्वास करेगा असे तुरन्त दण्ड दिया जायगा; और अंग्रेजों का विश्वास करने से लखन के राजाओं की जो गत हुभी वही अस की होगी। और अक बात लोगों को अवश्य करनी चाहिये; वह महत्त्वपूर्ण है । सब हिंदु-मुसलमान मिलकर, किसी मेक आदरणीय नेता की आज्ञा का पूरी तरह पालन कर, असा बर्ताव करें, जिससे सब कुछ व्यवस्थापूर्वक चले और गरीब मजा सुखी हो कर अन्नति करे । हर ओक को चाहिये कि अिस घोषणा-पत्र की अधिकसे अधिक प्रतिया बनाव और चुपचाप, अक्ल से काम ले कर, चौराहों में चिपका दे और जिनका प्रसार होने के पहले तलवार का अपयोग करे !" अंग्रेजी शासन के विरुद्ध युद्ध-घोषणा करते ही, दिल्ली के क्रांतिकारी आवश्यक शस्त्रास्त्र तथा गोलबारूद बनाने के काम में लगे। तोपो, बंदूकों और अन्य छोटे मोटे हथियारों को बनाने के लिओ मेक विशाल अद्योगालय शरू कर दिया गया। असकी निगरानी के लिअ कुछ फ्रान्ससियों को नियुक्त किया गया। गोलाबारूद के दो तीन बड़े कोठार खोले गये। रातदिन खपने