पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३२१

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' अध्याय १ ला] २७ [दिल्ली का संग्राम mumar वाले लोक कमी मन स्फोटक बारूद हर दिन बनाते। देशभर के लिअ गौकशी को बद करने की आज्ञा जारी हुी। मेक बार कुछ सिरफिरे मुसलमानोने जिहाद पुकार कर हिंदुओं को अपमानित करना शुरू किया। तब, सब दरबारियों को साथ लेकर बादशहा हाथी परसे सारे शहरभर में घूमे और साफ शब्दों में लोगों को समझाया, 'जिहाद केवल फिरंगियों के विरुद्ध है। यह भी घोषित किया गया कि गोवध करते को मिल जाय, तो असे तोपसे अडा दिया जाय, या असके हाथ पॉव कार दिये जायें। कुछ युरोपवाले भी अंग्रेजों के खिलाफ, क्रांतिकारियों से मिल कर, लड रहे थे। बुंदेल-की-सराय की लढामी के बाद, अंग्रेजों ने जिस युद्धक्षेत्र को चुन कर पैर जमाया था, वह यौद्धिक इलचलों की दृष्टि से बहुत सुयोग्य था। दिल्ली के परकोटे के अक छोर के पास से जमुना नदी से चार मील दूरी तक फैली पहाडी ( अंग्रेज अिसे 'रिज ' कहते थे) अस की प्राकृतिक अंचासी के कारण युद्ध के लिअ बड़ी काम की थी। आसपास के प्रदेश की सतह से यह पहाडी ५०-६० फीट अची थी, जिस से तोपों की लगातार मार चालू रखने को अच्छी जगह थी; और दूसरे, अिस पहाडी की पिछली ओर जमुना की चौडी नहर थी । अिधर सालभरमें जोरों की वर्षा होनेसे जून में भी अस नहर में गहरा पानी था । पिछली ओर होने से अस ओर से शत्रु का भय न था। हॉ, दिली के क्रांतिकारी जिम्न प्रकार आगे से झूझ रहे थे अन के साथ साथ पंजाबवाले यदि पिछेसे हमला करते तो अंग्रेजों की नाक में दम हो जाता; किन्तु दुर्भाग्य से पंजाबने ब्रिटिशों के साथ होने की घोषणा की थी। नाभा, जींद और पटियाला के नरेशोंने पंजाब के सब महत्त्व'पूर्ण मागों की रक्षा कर, पंजाब से अंग्रेजों को रसद तथा कुमक पहुंचना आसान बना दिया। भारत के दुर्भाग्य से यह संजोग अंग्रेजों के लाभ में था, जिम से अन की अनुकूलता अधिक बढती गयी। छोटी मोटी पहाडी श्रृंखला, पीछे शत्रु की तोपों की पकड में न आनेवाला सेना का शिबिर बनाने योग्य ..विशाल पठार, साथ साथ शत्रु के गुप्तचरों के अपद्रव से दूर जगह, बिलकुल पास बहनेवाला वियुल पानी, पजाब के वफादार नरेशोंने अपने खर्च से दिनरात