पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३२२

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अग्निपलय] २७८ [तीसरा खंड पहरा दे कर सुरक्षित रखे पंजाब के यातायात के महत्त्वपूर्ण मार्ग, आदि सब प्रकारसे अनुकूल स्थिति से जिस का आत्मविश्वास फूला था वह ब्रिटिश सेनापति बर्नार्ड, अपने अन्य सहयोगियों के साथ कहने लगा 'बस, अब दिली क्या है; अक दिन में लेंगे।" . और सचमुच जब दिल्लीपर दखल करना अक दिन का काम है, तब दो दिन क्यों लगाये जायें ! तो फिर अिस पापी और राजद्रोही दिल्ली को भटियामेट करने के लिखे सिसी क्षण अिन अंग्रेज सैनिकों को धावा बोल देने की आज्ञा हम क्यों न दें ? पजाब तो हमारी सेना की रीढ़ है, वह जब दृढ है तब दीर्घकाल तक घेरा डालकर दिली जीतने की दुबली नीति का अवलंघन हम क्यों करें ? अिस नीच दिल्ली नगरीपर सहसा टूट कर, अक ही धडाके में असे तहस नहस कर डालना, क्या, अधिक अच्छा न होगा ! चलो, अपनी सेना के दो भाग करें! अक हिस्से के सैनिक लाहौरी दरवाजे को तोड दें और दूसरा विभाग काजुली दरवाजा झुडा देगा; फिर दोनों विभाग अिकठा होकर नगर के मार्गों में घुस पहें और मेक अक मोर्चा हथियाते हुमे झट से सीधे किलेपर टूट पड़! बिलबरफोर्स, ग्रेटहेड और हडसन जैसे वीर जैसी साहसिक और धडाकेबंद चढाी के लिये बहुत बेचैन हो अठे है और जिस मुहीम को सफल बनाने का बडिा भी अन्होने अठाया है। फिर देरी काहे की? और, सचमुच, १२ जून को जनरल बर्नार्डने चढासी की आज्ञा गुप्तरूपसे दी ! कौन कहा अिकछे हों, रात के अंधेरे में कौनसे दस्ते आगे बढ़ें, दारों बा) पासों का नेतृत्व कौन करें आदि सब प्रबंध पहलेसे निश्चित हो चुका था। अिस तरह पूरी सिद्धता होनेपर रात को दो बजे निश्चित स्थान पर, याने संचलन भूमिपर, गोरी सेना आ खडी हो गयी। कल दिछी के शाही महलही में रातको आराम करने की निश्चिति हर सैनिक को थी, जिस से आज की नींद के कुछ घंटे खराब हों तो असकी शिकायत मूरख हो वहीं करेगा। किन्तु, हाय, जिस समय भी अंग्रेजों के दुर्भाग्य का पल्ला भारी रहा। क्यों कि, जैन मौकेपर, सेना का कुछ हिस्सा गायब हुआ मालूम पडा । बिगेडिअर ग्रेव्हज् को अिस तरह दिलीपर चढामी करना अतावलेपन सा