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अध्याय १ ला] २७९ [दिली का संग्राम मालूम पडा और दूसरोंने तो यहाँ तक संदेह पझ्ट किया कि अिस तरह की योजना भारतभर के अंग्रेजों को हानि तो नहीं पहुंचायगी ? मतलब, सीधी चढाी और तुरन्त विजय के जो सपने गोरे सैनिक देख रहे थे, वे दिलीके शाहीमइल में सच निकलने के बदले, अस रातको शिविर के खाटॉपर छटपटाने तक ही सीमित रहे। दूसरे दिन सबेरे विल्बरफोर्स और ग्रेटहेड ने फिरसे हमले की योजना बनाथी और मेनापति बर्नार्ड के आगे पेश की। बर्नार्ड क्रिमिया के युद्ध में नामवरी-प्राप्त प्रसिद्ध योद्धा था, फिर भी हमें सदेह होता है कि वह दुलमुल नीति तथा हिचकिचाहट का आदी होगा । असने १४ जून को मुख्य मुख्य अधिकारियों की यद्धसमिति की बैठक बुलायी और वहाँ चढाओ की योजना पेश की। ग्रेटहेड ने आवेशपूर्ण समर्थन कि। किन्तु समिति को जीत की आशा न दिखायी दी, बल्कि समितिने यह हठ पकडा की योजना के अनुसार चढाी कर जश मिला भी, फिर भी प्रत्यक्ष हार जितनी बल तथा प्रतिष्ठा की हानि होगी । और, हॉ, सीधी चढाी से दिल्लीपर दखल हो जाय, तो फिर आगे क्या ? असे अपने हाथ में बनाय कैसे रखें ! मार्ग मार्ग में, घर घर से धडकनेवाली कातिकारियों की तोपों के सामने गोरे सैनिक कहॉ जीवित रहेंगे ? बर्नार्ड जिसका निश्चित अत्तर दे न सकता था। अिस सारी चर्चा के बाद चढाश्री के बारे में भिन्न भिन्न राय होने ही में सब सहमत हुओ। और मिस तरह १५ जून की रात के 'सपना' के समान सारी योजना केवल विचार ही में बद रख कर १६ जन को फिर एक अक बार समिति की बैठक बुलायी गयी और फिर अक बार भिन्न मत तथा हिचकिचाइट का पदर्शन हो कर बैठक बद हुी। अिधर अग्रेज जोरदार और साहसपूर्ण चढाभियॉ करने के मनसूबे गढ रहे थे, अधर दिल्ली में भी नया खून, नये हृदय, नया सैनिकबल-सब का सैलाव सनसना रहा था और क्रातिकारियोंने भी अबतक की बचाव की नीति तज कर, चढाी का प्रारभ कर, भिन्न भिन पासों से निटिश सेना पर सफल हमले जारी किये थे। भारतभर में विद्रोही बने सैनिक दस्ते अपने साथ शस्त्रास्त्र, गोलाबारूद और खजाना लेकर दिछी