पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३२५

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अध्याय १ ला] २८१ [दिल्ली का संग्राम weremon दस्तों को, आने के दूसरे दिन हमले के लिये भेजा जाता । १३ जून को फिर से 'हिंदुराव की कोठी । पर धावा किया गया। १२ जून को क्रांतिकारियों में मिले ६० वी पलटन के दस्ते जिसमें खास अग्रसर थे। मेजर रीड कहता है “अँडट्रॅक रोड से सीधे अन सैनिकों के दस्ते चढ आये। जिस चढासी का नेतृत्व सरदार बहादुरसिग को दिया गया था। वह बाों को घूमने की सोच रहा था, अिससे वह अपने आदमियों को दूरी पर रहने को कह रहा था। जिस लडामी में असने बहुत वीरता दिखायी। सरदार बहादुर को अस के अर्दली लालसिंग ने गोली से अडा दिया; मने असकी छातीसे “ रिबड ऑफ 'मिडिया ' अतार ली और मेरी स्त्री को भेज दी।" १७ जन को क्रांतिकारिग ने आंदगाह की कोठी पर तोपों के मोर्चे बनाये, जिस से " रिज' पर तोपों से सख्न बौछार की जा सकती थी। यह देख कर हेन्री टॉम्बस और मेर रीडने क्रांतिकारियों के दोनों पासों पर बहुत जोरदार हमले किये और काफी दबाव डाला; किन्तु अस कोठी में अटके मुठ्ठीभर क्रातिकारी हार का नाम न लेते थे। जब वे गोलियों न चला सके तब अन्होंने बदूकें फेंक दी और तलवारे संवार कर अंग्रेजों पर बड़े आवेश से टूट पडे । अनमें से हर एक • अपने अपने स्थान पर लडते लडते मारा गया, किन्तु तब तक दुश्मन बीदगाइ में पॉप न धर सका। १८ जून को नसिराबाद के विद्रोही आ पहुँचे; आते ही सारा खजाना अन्होंने नेताओं को सौंप दिया। स्वयं सम्राट ने अन के प्रतिनिधिओं को अपने राजमहल में नियत्रित कर अन से मिला ! दरबार में जिन प्रतिनिधियों ने २० जून को अंग्रेजों पर चढ जाने की सौगंध ली। अस के अनुसार २० जून को सबेरे चढानी करने के लिये क्रातिकारी सेना दिल्ली के बाहर जाती दिखायी पड़ीं। अंग्रेजों की पिछाडी पर हमला करने के अिरादे से सब्जी मण्डी हो कर सैनिक छिपे छिपे गये; और अंग्रेजों को अिसकी कानोकान खबर तक न मिली । अन्हों ने गोलियों की झडियो लगा दी और अंग्रेजों पर जोरदार इमला किया। स्कॉट, मनी, टॉम्बस और अन्य अग्रेज अधिकारियों ने तोपों से आग अगल कर चढामी रोकने की चेष्टा, की । किन्तु भारतीय सैनिक जितने