पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३२६

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अमिमलय ] , [तीसरा खंड जीवट से चढाी कर रहे थे, कि अन्हे अटकाना दूभर था। नसिराबाद का तोपखाना तो भैसी संहारक आग अगलते आगे बढा, कि बहादुर टॉम्बस भी रुवासा होकर चिल्लाया “डली! दौडो,जलदी दौडो,नहीं तो मेरी तोपें अब दुश्मन के हाथ लगीं समझो ! " पंजाबवाली हिंदी सेना के साथ डली अस की सहायता करने दौडा; किन्तु थोडेही समय में मेक क्रातिकारी की गोली अस के कंधे में घसी और असे लौटना पडा ! सायंकाल का समय हुआ; सिपाही निश्चितरूप से विजयी रहे। फिर से अन्हों ने हमला किया और लगभग ब्रिटिश तोपें हथिया ली। ९ वी लान्सर पलटन तथा देशद्रोही पंजाबी पलटन के दस्ते क्रांतिकारकों पर बार बार चढ आते किन्तु हर बार मुंह की खा कर झट पीछे हट जाते । रात ही तोभी भीषण रण जारी था। अंग्रेज भी डट कर लडे और मुश्किल से अपनी तो बचा पाये। लॉर्ड रावर्टस् का कहना है, 'बागियों ने हमारे पाव अखाड दिये थे।' होप ग्रेट की सवारी का घोडा ढेर हो गया; ग्रॅट स्वयं घायल था और असको अक मुसलमान सवार न अठाता तो वह भी मारा जाता । आधी रात तक यह लडाी जारी रही। फिर भी क्रांतिकारियों को रोकना दूभर होने से अंग्रेज रणभूमि से हट गये। और ब्रिटिश शिबिर की पिछाडी में ओक महत्त्वपूण मोर्चा विजयी क्रातिकारियों के कब्जे में पूरी तरह आ गया। अस रातमें, बिटिश कमाडर को चिंतासे नींद हराम हो गयी; क्यों कि, अितनी बहादुरी से जीता हुआ मोर्चा यदि क्रातिकारी रख सके तो बिटिशों का पंजाबसे यातायात का मार्ग पूरी तरह तोड देंगे। जिस संकट को टालने के लिये तडके से ही विजयी शत्रु का मुकाबला करने की सिद्धता अग्रेज कर रहे थे। किन्तु अिधर गोलाबारूद तथा सैनिकों की कमी से कातिकारी दिल्ली लौट गये थे और खाली जगह अंग्रेजों ने जीत ली । अिधर अपनी जीत , तथा सैनिकों के डट कर पीछा करने के संवादों से अत्साहित दिल्ली के नागरिकोंने, नगर के परकोटे पर अक बडी लम्बे पहुँच की तोप चढाकर अंग्रेजों की छावनी पर लगा तार गोले फेंकना जारी रखा । दिली के सैनिकों के भिन हमलों से अंग्रेज किसी तरह की आक्रमक इलचल कर नहीं पाये; बचाव करने ही में लगे रहे।