पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३२८

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अमिप्रलय] २८४ [तीसरा खंड M रहे थे। मेजर रीड बताता है, " बागियों ने बारा वजे हमारे व्याप्त युद्धक्षेत्रपर करारा हमला किया। मैं नहीं जानता कि अस दिन की वीरता की अपेक्षा आधिक वीरता कभी किसीने दिखलायी हो। उन्हों ने मेरी राअिफली पटलन पर तथा गाअिडदस्तों पर ताबडतोड असा जोरों से हमला किया, जिससे अकबार मैं मानने लगा कि, अब हमारी बन आयी है। * प्रत्यक्ष अस रणमैदान में लडनेवाले अक शूर अग्रेज अधिकारीका यह कथन बताता है कि क्रांतिकारियों की चढालियों कितनी जोरदार तथा भयकर होगी। यह बहुत अच्छा सबूत है। किन्तु दुर्भाग्यवश यह बिखरी पड़ी आग तथा शक्ति को संगठित कर काम में लानेवाला कोसी नेता क्रांतिकारियों को न मिला । स्वदेश की स्वतंत्रताको फिर से प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा और पलासी के राष्ट्रीय अपमान की सदा कुरेदनेवाली स्मृति-केवल अिन दो बंधनों ने अन्हें अक जगह बांध रखा था। अग्रेजी तोपखाना भी क्रांतिकारियों के हाथ लगने का डर पैदा हुआ और अन्त में कर्नल वेल्शमन, अपने सैनिकों की पूंछ मरोडने की कोशिश में स्वय गोली का शिकार हुआ। सारे दिनभर अंग्रेजों का हर सैनिक भी जी-जानसे लड रहा था, फिर भी अब अनका डा रहना असम्भवसा हो रहा था । किन्तु बिटिश सेनापति को अब भी निराशा होने का कारण नहीं है । क्यों कि, आज ही सबेरे आ पहुंची वफादार पजाबी पलटन अपना कौशल दिखाने को अन्सुक थी ! असे 'आगे बढो का हुक्म दिया गया । यह सेना नयी आयी थीक्रांतिकारी दिनभर के अनथक लडाभी से थके हुड़े थे। पंजाबी सेना के जोरदार हमले के बराबर का जवाब वे दे न सके। जैसी दशा में भी राततक वे झूझते रहे । और अन्त में दोनों सेनाओं अपना अधिकार विजय पर बताती हुभी लौट गयी । अिसी तरह किसी की हार जीत न होते हुओ पलासी की शत सवत्सरी का दिन पूरा हुआ। और अक दूसरे की वीरता तथा हिम्मत की कद्र करते हुओ सैनिकों ने अपने २ शिविरों में प्रवेश किया।

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