पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३३१

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अध्याय १ ला] २८७ [दिली का संग्राम बचे थे, जिस से सम्राट् को अनके वेतन या पैसे की चिंता जा भी न रही। क्यों कि, उसे बताया गया कि जो भी धन और प्राप्त होगा, सम्राट के चरणोंमें धर दिया जायगा । बख्तखों के सम्मान में चार सहस्र रुपयों की मिठासी सम्राट् की आज्ञा से सेनामें बॉटी गयी | आगरेवाले, नसीराबादवाले तथा जालंदरवाले सभी सैनिक बख्तखों के आधिपत्यमें थे। यह आज्ञा जारी की गयी कि हरमेक नागरिक को अपने पास शस्त्र रखना चाहिये; जिन के पास कोजी हथियार न हों वे थानेपर जाकर विनामूल्य शस्त्र ले जाय। शहर में लूटखसोट करते हुझे कोसी सिपाही मिल जाय तो असके हाथ तोड दिये जाते थे । बख्तखाने शस्त्रागार के सभी शस्त्रों तथा गोलाबारूद को अनुशासनपूर्वक रखवाया । रात को आठ बजे सेनापति राजमहल में गये । सम्राट बहादुरशाह, अनकी बेमम जीनत महल, हकीम हसनुल्लाखान अवं अहमद कुलीखान--सबने मिलकर परिस्थितिपर चर्चा की। ३ जुलामी के सामूहिक संचलन के समय करीब बीस सहस्र सैनिक उपस्थित थे ।* अिघर बख्तखॉ के आगमन से दिल्ली के क्रातिकारियों में अनुशासन और सगंठन का दौरदौरा शुरू हो गया था, अधर अंग्रेजों की ओर नया उत्साह तथा साहसवाले सैनिक पजाबसे पहुंच रहे थे । पजाब से अभी आये हुझे ब्रिगेडियर जनरल चेम्बरलेन से बढकर अत्साही और कर्मठ अधिकारी अंग्रेजों के पास सिनेगिने ही थे। सुप्रसिद्ध सैनिकी स्थापत्य विशारद (मिलिटरी अन्जिनियर ) बेअर्ड स्मिथ भी पंजाब से आ पहुंचा था। सर जॉन लॉरेन्सने पंजाबसे अन सभी व्यक्तियों को अग्रेजी सेना की सहायता को भेजा, जिन्होंने 'सिक्ख-युद्ध में विशेष पराक्रम दिखाया था। अब जनरल बर्नार्डने फिरसे जोरदार तथा साहसिक चढाभी का प्रयोग करने की ठानी । असे प्रयोग वह पहले भी दिली पर आजमा चुका था और वे सब मसफल होनेसे छोड देने पडे थे। अब आज की चहामी का आयोजन भी पहले के समान अच्छे हंग से किया गया था। अबतक हमले के लिखे तरसनेवाली अंग्रेजी सेना . * मेटकाफकृत नेटिव्ह नरोटिव्ह पृ. ६०.