पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३३३

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अध्याय' १ ला] २८९ [दिली का संग्राम का जतन किया किन्तु निशाना चूका, अन्टे मेक सिपाहीने अस की तलवार ही छीन ली। दोनो की भिडन्त हुी 1 सिपाहीने हिलको चारा खाने चित्त मारा और अस की छाती पर पॉव रख अस सिपाही ने अपनी तलवार उठायी। मेजर टॉम्बस्ने ३० फीट की.दूरीसे, यह दृश्य देख, बंदूक का निशाना ताका और अस सिपाही को गोली से अडा दिया; फिर असने हिलको अठाया और ज्योंही दोनों चलने को थे, दूसरा सिराही, हिल की पडी पिस्तौल को अठा, अन का पीछा करते दीख पडा । मुठभेड में अम सिपाहीने अक अग्रेज को तलवार से घायल किया; दूसरे का काम तमाम किया और तीसरे अंग्रेज की तलवार के घावसे स्वय कट गया। टॉम्बस् और हिल को अिस बहादरी के लिअ 'विक्टोरिया मेडल ' मिला और सर जॉन के के कथनानुसार अस सिपाही को वास्तव में 'बहादुरशाह-पदक' मिलना चाहिये था-मिस स्वाधीनता संग्राम में कितने ही सिपाहियों को पराक्रमी बलिदान के अपलक्ष में 'बहादुरशाह पदक मिलना चाहिये था ! हॉ, यहभी सच है, कि जो सच्चे सूरमा आत्मबलिदान में पिछे न हटनेवाले होते हैं, उन्हे 'वहादुर शाह-पदक' भलेही न मिले, उस से भी महत्तम हुतात्मा तथा कर्तव्यनिष्ठा का पदक प्रत्यक्ष मृत्यु के हाथों उन्हे समर्पित होता है। उस दिन अंग्रेजों को बहुत बुरी मार पड़ी। जिसका बदला क्रांतिक्रांतिकारियों से लेना असम्भव था तब ये गोरे 'सूरमा' अपने शिविरमें लौटे और गरीब भिश्तियों तथा अन्य हिंदी नौकरों को ही वेधडक कट डाला । और, येही वे भले भिश्ती और नौकर थे जिन्हों ने ब्रिटिश

  • सं. ३९ : “ बनाया जाता है, कि प्रत्यक्ष शत्रुओं के न होनेपर कुछ गोरे सैनिकों ने बेचारे निरपराध कर्मियों, नौकरों तथा अन्य लोगों को कत्ल किया, जो मीसाी -स्मशान के पास भयभीत हो कर जमा हो रहे थे! . कितनी भी निष्ठा ! कितनी भी वफादार और कष्ट अठाकर की हुी भी सेवा क्यों न करें, पूरब की मैली. वर्दी पहने हरओक मानव से हमारे गोरे.