पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३३६

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- - Cam अध्याय २रा हवलॉक · अिलाहाबाद का किला सिक्ख सिपाहियों ने जब अंग्रेजों को अपने भाभी क्रांतिकारियों को नहीं-जिता दिया, तब यहीं पर अंग्रेजों ने अपना प्रमुख अड्डा बनाया, जो आसपास के सैनिक यातायात के लिये सुविधाजनक था। अबतक कलकत्ते जैसी दूरी के स्थान से अत्तर भारत के सेनापरक तथा राजन्यवहारपरक कार्यों का संचालन करने में जो खतरा था वह अिस से नष्ट हो गया । लॉर्ड कॅनिंग ने, क्रांति को जडमूल से अखाडनेतक, राजधानी कलकत्ते से मिलाहाबाद ले जानेकी ठानी; अस के अनुसार वह मिलाहाबादमें रहने लगा ! किन्तु बीचमें कामपुर की अंग्रेजों के सिर पड़ी विपत्तियों के समाचार तथा सहायता के लिये अनकी आर्त पुकार अिलाहाबाद तक पहुँच चुके थे। तब जनरल नील ने प्रयाग की रक्षा के लिये कुछ सेना रखकर, शेष सभी सेना को, कानपुर का मुहासरा तोडने के लिये, मेजर रेनाड के आधिपत्य में भेन दी । यह सेना मार्गमें मिले सब देशातों को जलाते हुमे आगे बढ रही. थी। अिसी समय कानपुर की सेना के सेनापति-पदपर, नील के स्थानपर, हॅवलॉक की नियुक्ति हुभी । वह जून के अन्तमें भिलाहावाद आ पहुँचा । वह काफी लब्धमतिष्ठ और मजा हुआ अधिकारी था। अग्रेजों के सौभाग्य से जिधर विप्लव का प्रारंभ हुआ, अधर औराण के साथ युद्ध समाप्त हआ और इवलॉक जैसे सुयोग्य सेनापतिके नेतृत्वमें सारी गोरी सेना, ठीक बॉके समय में,