पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३३७

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अध्याय २ रा] [इनलॉक सीधी भारत आ पहुंची । अपने स्थानपर इंवलॉक को प्रयाग के प्रमुख अधि कारी-पद पर नियुक्त किया और असे असके मातहत काम करना पडेगा यह जानकर नील को गुस्सा आ गया, फिर भी असने अपने व्यक्तिगत कीने को राष्ट्र कार्य के आडे-भारतकी अंग्रेजी पकड के आडे-कभी न आने दिया । सेना को संगठित करनेके जोरदार जतन असने जारी रखे । हॅवलॉक के नेतृत्व में जानेवाली सेना को सब प्रकारकी पूरी सहायता दी और हॅवलॉक के पहुंचने पर आज्ञाकारी बनकर सब सत्ता असको चुपचाप सौंप दी। अब कानपुरके गोरों की सहायता के लिये यह सेना हरतरहसे लैस थी। हॅवलॉक अब कूच करनेही वाला था कि खबर आयी--" सर व्हीलर की हार होकर असने शरण ली है और असके समेत सभी गोरों को गंगा घाटपर कत्ल कर दिया गया ! ___अपने भालियों की हत्या का बदला लेने के लिये अिलाहाबाद से हवलॉक कानपुर को शीघ्र चला। साथ में बदले की भावना से बौखलाये मेक इजार चुनिंदे गोरे पैदल सैनिक, १५० सिक्ख, अक मॅजी हुी रिसाले की पलटन और ६ ती थीं । अिन के साथ कुछ नागरिक तथा सैनिक अधिकारी भी थे । ये वेही थे जिन्हें क्रांतिकारियों ने दयाभावसे जीवित छोड दिया था किन्तु मिस अपकार का बदला चुकाने, याने अन्हीं सिपाहियों से लोहा लेने, अन से भयंकर बदला लेने और नवागत अधिकारियों को कानपुर के विविध स्थानों की भौगोलिक जानकारी देने के लिये मिस सेना के साथ चले। सिपाहियों के केवल अिशारे मात्र से जो जमलोक कि नरक में पहुंच जाते और केवल सिपाहियों की सभ्यता के कारण जिन्हे जीवित रहने का मौका मिला था, वे सभी शूर (!) अंग्रेज अधिकारी अब अिकठा हो कर बेरोकटोक सभी गॉवों को जलाते आगे बढ रहे थे। 'मेजर रेनाड के नेतृत्व में फतहपुर पर कुछ दस्ते चढ आने के समाचार कानपुर पहुंचते ही, नानासाहबने अपनी सेना को अधर भेज दिया । रेनाड की सेना को चुटकी में कुचल देने के अिरादे गढते हुओ ज्वालामसाद तथा रटिक्कासिंह की सेना फतहपुर पहुँची । किन्तु अस समय तक इवलॉक की सेना