पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३३९

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उनकी तलाशी में मालूम हुआ कि कोठी में 'बंदी स्त्रियो के पत्र उन्होंने इलाहाबाद के अंग्रेजो को पहुचाये थे | जिन स्त्रीयो को कत्ल से बचा कर नानासाहब ने जीवित रखा , उन्होंने जब फिरसे अंग्रेजो के साथ पत्रव्यवहार करने का विश्वासघात करने की खबर मिली , तब उनके बारे में क्या करना चाहिय यह प्रश्न पैदा हुआ | जब कि , अंग्रेजोंने फतहपुर जला दिया है ; तब उसका प्रतिशोध बीबी की कोठी जला कर क्यों न लिया जाय? इस बंदीगृहको 'बीबीगढ़' कहते थे , फिरभी नानासाहब की बिचवाईसे कुछ पुरुषोंको भी इस बीबीगढ़ में आसरा दिया गया था | उस रात की बैठक में सर्व सम्मति से यह निश्र्वय हुआ कि इन सभी बंदियों को , उनके नीच ,विश्वासघाती जासूसों के साथ ,मार डाला जाय | दुसरे दिन उन जासूसों तथा स्त्री- पुरुष बंदियों को बाहर घसीट लाया गया और एक पॉती में खडा कर दिया गया। पहले नानासाहब के सामने उन विश्वासघाती जासूसों का सिर तलवार से उडा दिया गया। अग्रेज पुरुषों को गोली से उडा दिया गया | फिर नानासाहब बीबी की कोठी से बाहर हो गये | तब बाहर से जनताने आकर उन लाशों का मखौल अड़ाया कि ' यह मद्रास का गवर्नर | यह बम्बई का सूवा , वह बगालका |" लोग यह क्रूर हॅसी उड़ा रहे थे तब सिपाहियों को आज्ञा मिली , कि बीबीगढ् के सभी बंदियो को कत्ल कर दिया जाय | वहॉ का बगिपाल इस काम में हिचकिचाने लगा ; तब किसी आधिक् क्रूर आदमी की खोज हुई | पास होनेका अभियोग उनपर लगाया गया | उन पत्रों के बारे में कुछ महाराजा तथा शहर के ' बाबू ' लोगों का हाथ होने की आशंका थी | तब निश्वय हुआ , कि उन जासूसों , स्त्रियों , बच्चों , तथा जिन थोड़े अग्रेज पुरुषों की जान बचायी गयी थी उन को मार डाला जाय |" नॅरोटब्हि ऑफ़ दि रिव्होल्ट नानासाहब का एक ईसाई बंदी यहीं वृत्तान्त कहता है ; और एक आया भी यह सब सच होने की गवाही देती है ।