पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३४

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ज्वालामुखी ] २ [ प्रथम खड

महान धार्मिक तथा राजनैतिक क्रांतियां की तहमं होनेवाले मूल-सिध्दान्तो को जाननेके पहले उपरसे विरोधी दीखनेवाली घटनाआंका समन्वय कर दिखाना सर्वश: असम्भव है। अनगिनत चकां तथा अगणित पंचो से भरे, प्रचंडशक्ति का र्निमाण करनेवाले, यत्र मे शक्ति कैसे पैदा की जाती है इसका पता यदि हमे न हो तो उसे देखकर हमें बडा अचरज होगा; किन्तु उस यंत्र के पुर्जो के पूरे ज्ञान से होनेवाले आनद का अनुभव कभी न होगा। जब लेखक फ्रांन्स की राज्यक्राति या हालंड की धार्मिक क्राति के सनसनीखेज प्रसंगा का वर्णन करते है और उन के घोरतम समरंप्रसगो के शब्द्चित्र अंकित करते है, तब उन प्रसगो की जगमगाहट तथा अतिमहन्ता ही से उनके मन:श्रक्षु ऐसे तो चौधिया जाते है, कि उनक्रातियां के मूल सिध्दान्तो का विश्र्लेपण करने को पैठने के लिए आवश्यक धीरज तथा शान्ति उनके पास नही बचती। क्राति की तहमं होनेवाले अञात कारणों तथा कार्य करनेवाले गुप्त शक्ति-सोतों को पूरीतरह बिना परखे क्रातिके सच्चे स्वरुप का दर्शन कभी नही होगा; और इसीसे केवल कथन की अपेक्षा तत्वदर्शनही को इतिहासमें अधिक महत्व होता है। सिध्दान्तों ही को ढूढॅने में इतिहासकार और एक भूल कर जाता है। हर घटना के भिन्न भिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष , विशेष और साधारण,आवश्यक एव आकस्मिक कारण होतें हैं। उनके ठीक श्रेणिविभाजन में ही इतिहासकार की कुशलता है। इसी छानबीन मे कैई इतिहासकार चकरा जाते है; क्योकि आकस्मिक कारणों ही को वे आवश्यक मानते है और किसी अग्रिकाड के मामले की जाचॅ करनेवाले न्यायाधीश कें समान, जिसने दियासलाइ जलानेवालेको बरी कर सलाई ही को दोपी ठहराया, अपना हँसी करा लेते हैं। किसी घटना का सच्चा महत्व, इस तरह कारणो की मिलावट कर देनेसे, कभी मालूम नहीं होता। यहीं नही, जिस कातिमें अनगिनत मानव तलवार के घाट उतार दिये गये और एक विशाल देश वीरान हो गया वह क्रांति कुछ मानवोने 'स्वात:-सुखाय' तथा अपने छिछोरे स्वार्थ को सीधा करने के लिए सगठित की यह मानकर, सपूर्ण मानवजाति, उन मानवों की स्म्रति को, शापपर शाप देती है। और इसी से किसी घटना का और खासकर कातिकारी घटना-