पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३४३

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अध्याय २ रा ] २९९ [हॅवलॉक सेना को भारत में तथा अिग्लड में भी अंग्रेजोंने धन्यवाद दिये। अिग्लंड में हर चौराहेमें, दुकानों की तख्तियोंपर तथा सार्वजनिक अिमारतों की दिवालोंपर हबलॉक का नाम लिखा गया था। । जब कानपुर लुटने की आज्ञा दी गयी तब घायल सिंहपर टूट पड़ने. वाळे गिद्ध की तरह सेंकडों अग्रेज अधिकारी, गोरे सैनिक तथा सिक्ख सिपाही कानपुर पर टूट पडे । बीबगिढ में भूमिपर खूनके पपडे बने थे। अर्थात् यह रक्त अग्रेजों का होने की आशका अंग्रेज अधिकारियों को हुी। तब कानपुर के बहुत बाम्हणोंको पकड मगवाया गया, और क्रातिकारियोंसे सबंध होने का संदेह जिनके बारे में हुआ अन्हें फॉसी लटकाया गया। किन्तु, हॉ, फॉसी लगाने के पहले अन्हे वे खून के पपडे चाटनेपर मजबूर किया गया और फिर वे खून के दाग झाडू से साफ धो डालने का काम अनसे करवाया गया। असा अनोखा दण्ड अन्हे क्यों कर दिया गया ! यह पूछनेपर अक अंग्रेज अधिकारीने यो जबाब दिया “मैं जानता हूँ, कि फिरगी के खून को छूने, या अस के दागों को झाडू लेकर धो डालने से अञ्चवर्ण के स्पृश्य हिंदु धर्म की दृष्टिसे पतित होते हैं। हॉ, केवल जिसके ही लिओ हमने असा नहीं किया, तो फाँसीपर टागने के पहले अन की सभी धार्मिक भावनाओं को पैरोंतले कुचलकर जबतक मरनेके पहले अन्हे जितनी भी बात संतोष के लिसे न रहे कि वह हिंदुधर्म में ही मर रहे है, जबतक हम अस की छटपट न देखें तब तक हमें संतोष न होगा कि हमने पूरा पूरा बदला लिया है।" क्रांतिकारियोंने जो कलें की अनमें किसी तरह किसी की धार्मिक भावना को दुभाना तो दूर, अलटे अंग्रेजोंने जब चाहा तब मरनेके पहले अन्हे बाअिबल पढने का भी अवकाश दिया जाता था। किन्तु दिल्ली और कानपुर में कत्ल हुओ क्रांतिकारियों को अंग्रेजोंने रंच भी धार्मिक सतोष न मिलने दिया। फिर भी कितने ही सूरमा सिद्धान्त और धर्म के लिओ, असी दुष्टता के होते हुमे भी हँसते हँसते बलि चढकर अन्होंने फॉसी को पवित्र किया। चार्लस बॉल कहता है जनरल इंव. लॉकने सर व्हीलर की मृत्युका भयंकर बदला लेने की ठानी। हिंदी लोगों के झुड के झुंड फॉसी चढाये जाते। मरते समय कुछ कातिकारियोंने जिस