पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३४४

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अमिमलय ] [ तीसरा खंड मनःशाति और कुलीनता का परिचय दिया, वह सिद्धान्त पर मर मिटनेवाले हुतात्मा के योग्य और निस्संदेह सराहनीय था। अनमें अक कानपुर का मजिस्ट्रेट था, जो नानासाहब के शासन में नियुक्त हुआ था; असे पकडकर असपर मुकदमा चलाया जा रहा था। किन्तु असने न्यायालय की कार्रवानी में कोजी हिस्सा न लिया, मानों यह सब किसी दूसरे के लिसे चल रहा हो 'असे मृत्युदण्ड सुनाया गया तब वह अठा और न्यायाधीश की ओर ध्यान न देकर, घूमकर, धैर्यपूर्वक डग भरते हुअ असके लिओ बनायी टिकडी पर ज्या खडा हुआ। जल्लाद जब आखरी कार्रवासी की सिद्धतामें मगन थे तब, जैसा कि कुछ हुआ ही नहीं; शान्त दृष्टि से देख रहा था। योगी जिसतरह समाधि में प्रवेश करता है अस शान्तभावसे अपनी गर्दन अपने हाथों फॉसी में फंसायी; अपनी आनपर अडिग श्रद्धा होने से, अस निर्भकमना को मौत तो, हिन्दुधर्म देष्टा फिरगियों के पापी सपर्क से मुक्त होकर स्वर्ग के नदनवन में पहुंचने का, महूरत था । * ___ जब अंग्रेजी सेना कानपुर में बदले के नाम पर अत्याचार की धूम मचा रही थी, तब इतने निश्चय, अनुशासन तथा कंधसे कधा भिडाकर लडे हुसे अंग्रेज तथा सिक्व सैनिकों की हॅवलॉक ने बड़ी प्रशंसा की। थोडे ही दिनों बाद, मिलाहाबाद में अच्छी तरह सैनिक प्रबंध कर, जनरल नील कानपुर आया। दोनों समान श्रेणी के अफसर थे तब स्वाभाविक था कि हर अक सेना का आधिपत्य अपने हाथ रखने को चाहे! किन्तु स्पर्धा से पहले ही ढीले अनुशासन की अंग्रेजी सेना में और ही गडबडी मच जाती। यह सोचकर जनरल नील के आते ही हॅवलॉक ने असे साफ कह दिया, “ जनरल नील, हम एक दूसरे को अच्छी तरह समझें । मैं जब तक यहाँ हूँ तब तक अन्तिम सत्ता मेरे हाथ में रहेगी और आप मेरी सेना को कोमी हुक्म नहीं दे पायेंगे । " दो अफसरों के आपसी ___. * चार्लस बालकृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड १, पृ.३८८