पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३४८

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अग्निप्रलय] ३०४ . [तीसरा खंड चलता था । लखन की गुप्त क्रांतिकारी संस्थाओं तथा दानापुर के सिपाहीयो से गुप्त संबंध जोड कर पत्रव्यवहार भी शुरू कर दिया गया था। वरिष्ठ पुलीस के अधिकारी से लेकर ठेठ साधारण ग्रंथ-विक्रेता तक हर अक पटनानिवासी अंग्रेजी सत्ता पर वार करने के 'अस क्षण ' की अन्कट अत्सुकता से राह देख रहा था । मिन सभी गुप्त संघों का प्रमुख कार्यालय पटनाही था। अस के सदस्यों में जनता के सभी वर्गों के प्रतिनिधि थे। सारी जनता को 'फिरंगी' शब्दसे बडी घृणा थी। स्वयं पुलीस वे आदमी क्रातिकारियों से मिले होने से रातमें गुप्त बैठकों का काम देखटके चलता था। कातिकारी सदस्यों ने की बहानोंसे सेंकडों क्रांतिकारियों को नौकर की हौसयत से अपने पास रखा था. अर्थात मुख्य सस्था से वे वेतन पाते थे। जिस तरह फिरंगी राज के द्वेष से. जलनेवाले पटने से प्रांतभर में अस की लपटें जनता को गुप्त प्रेरणा दे रही थीं दानापुर के सिपाही रात के अंधेरेमें पेडों के नीचे अिकडे हो कर भिन्न भिन्न योजना बनाते थे और कहीं किसी गश्ती अंग्रेज के ध्यान में यह बात आ नाय तो असे अकेले में मार डालते थे। जिस तरह सारी जनता, अपनी शक्ति संगठित कर क्रांति के लिअ सिद्ध हुी तब दिली और लखन की गप्त संस्थाओं से अन्दो ने बातचीत शुरू की। विद्रोह का समय निश्चित करने के अन्तिम निर्णय की चर्चा शुरू हुी थी, कि गोरे कमिशनर टेलर को मेरठवाले बलवे के समाचार मिले । साथ' साथ खबर मिली कि दानापुरवाल सिपाहियों में भी अशान्ति है। कमिशनर टेलर बडा धूर्त था । समूचा भारत बलवा करे तो भी सिक्ख अबतक देशद्रोही ही बने रहे थे। अिसी से पटना की रक्षा के लिअ श्री. रेंटे के नेतृत्व में २०. सिक्खों को टेलरने तुरन्त भेज दिया। पटना जाते समय लगातार हर स्थान में वणा और गालियों से अनका स्वागत होता था। लोग अन्हे राष्ट्रद्रोही, निमकहराम कहते थे और गाववाले व्यंग से अन्हे पूछते थे, “तुम गुरु नानक के सिख्ख हो या धर्मभ्रष्ट फिरंगी ?" अन्ई साफ साफ या गुप्त. , अपदेश भी दिया जाता कि ठीक समय आनेपर 'तुम देश की ओर से खड