पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३५

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अध्याय २ ला ] ३ [ रवधर्म और स्वराज्य

चक्रों का इतिहास लिखते समय, मात्र उनका वर्णन कर या आकस्मिक कारणों से उनका संबध जोड, लेखक सच्चे इतिहास को कहने में कभी कृतकार्य नहीं होगा। इस लिए नि:पक्षपाती इतिहासकारक को चाहिए कि वह क्राति की रचाई की नींव को सर्वप्रथम टटोले। मूल और आद्द की खोज तथा विश्र्लेषण ही उसका काम है।

फ्रेंच राज्यक्रांतिपरक एक महत्वपूर्ण आलोचनामें इटलीके क्रांतिवीर मॅजिनी कहते हैं कि हर क्राति के पीछे कोई न कोई आद्द सिद्धान्त होना ही चाहिए। इतिहास-पुरुषके जीवनमें होनेवाली सपूर्ण उथल पुथल का नाम है क्रांति। क्रांतिकारी आंदोलन का आधार क्षणजीवी तथा ढुल मुल, दुखदायी कारण कभी नहीं होता; वरंच क्रांतिकी तहमें ऐसे एक सर्वक्षोमक सिद्धान्त का होना आवश्यक है कि, जिसके कारण सहस्त्र सहस्त्र मानव युद्ध के आव्हान को स्वीकार करते है, सिंहासन डॉवाडोल हो जाते है;राजमुकुट चूर होते है,बनते हैं; आज के आदर्श मिट्टीमें मिलकर उनके स्थानपर नये आदर्श उदित होते है और अनगिनत जन अपना पवित्र लहू हॅसते हॅसते बहा देते है। जिस मात्रा में क्रांति की तहमें होनेवाला सिध्दान्त मगलकर या हानिकर होगा उसी मात्रामें क्रांतिको पवित्र या अपवित्र माना जाता है।व्यक्तिगत जीवनमें हो या इतिहासमें हो,किसी मानव या समूचे राष्ट्रके कर्मोकी भलाई बुराई उनकी तहमें होने-वाले हेतुके स्वरूपपरही निर्भर है। इस कसौटीको यदि हम भूल जायॅ, तो अलक्सादरके साम्राज्यवर्धक युद्ध और गॅरीबाल्डीके नेतृत्वमें लडे गये इटलीके स्वातत्र्ययुद्धके भेदका महत्त्व हमारे ध्यानमें आ ही नहीं सकता। इन दो घटनाओंका ठीक मूल्य ऑकनेके लिए इन युद्वोंको खडा करनेवाले प्रणेताओंके आद्द हेतुका निश्रय पहले करना पडेगा; या उन क्रातियोंका सपूर्ण इतिहास लिखनेके लिये उनके तहके हेतु, उनके प्रणेताओंकि मनकी तीव्र भावना तथा आकाक्षाऍ आदि बुनियादी कारणोंसे उन क्रांतियोंकी घटनाओंके कारणोंके सिलसिलेकां मिलानकर जाचॅना चाहिए। पक्षपाती तथा दूषित दृष्टिवाले इतिहास लेखकोंने जान बूझकर छोडी तथा दुर्लक्षित छोटी मोटी घटनाऍं उपर्युक्त दूरबीनसे सुस्पष्ट दीखने लगेगी। और इसतरह जब हम प्रारंभ करें तब सरसरी तौरपर असबद्ध दीखनेवाली