पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३५२

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अमिप्रलय] . ३०८ [तीसरा खंड संस्था के धनी सदस्यों से घन प्राप्त कर भुसने काफी लोग सशस्त्र बनाये थे और अन सबको ब्रिटिश शासन के विरुद्ध निश्चित समय पर भुठने के लिये शपथबद्ध कर लिया था। कमिशनर टेलरने पटना में जुल्म करना और सताना शुरू किया तब असका खून खौलने लगा, जिसने परि अली को शान्त रहने न दिया। वह स्वभाव से कडा, साहसी और शूर था। अपने भागियों की यत्रणाओं वह देख न सका और, जैसा कि असने स्वयं कहा-' समय से पूर्व अठा। , परि अली को फाँसी का दण्ड दिया गया। उस के हाथ भारी बेडियों से बॉघ दिये गये थे। बेडियाँ अितना कस कसकर दबायी जाती थीं कि मांस में गढने से कलानियों से लहू टपकने लगा! वधमंच पर जब वह खडा हुआ तब उसके मुखपर वीरोचित हास्य लहरा रहा था। वह अपनी मौत का सामना हँस कर रहा था। हॉ, जब असने अपने प्यारे पुत्र का नाम लिया तब असका गला भर आया। जिस भावावेग का मौका देख अंग्रेज अफसर बोला, 'देखो पीर अली । अब भी समय रहते अपने साथी नेताओं के नाम बता दे और अपनी जान बचाओ।' झट फिरंगि से मुखातिब हो कर निकि और खरे शब्दों में असने कहा, 'देखोजी! आयु में से कुछ प्रसम होते है जब प्राण बचाना आवश्यक ही होता है, किन्तु दूसरे से भी प्रसग्र होते है जब आत्मबलिदान ही महत्त्व पूर्ण साबित होता है । अभी दूसरे प्रकार का प्रसंग है, जिस समय मौन को गले लगाने से अमरत्व प्राप्त होगा।' सिस के बाद अंग्रेजों के कभी अत्याचारों को स्पष्ट शब्दों में वर्णन कर परि अली बोला. तुम मेरी हत्या करोगे या मुझ जैसे कअिको तुम फॉसी से लटकाओगे किन्तु हमारी साधना को तुम कभी न मार सकोगे। मेरे मरने पर लहू की हर बूंद से हजारों वीर उठ खडे होंगे और तुम्हा राज नष्ट कर देगे।

  • स. ४३ कमिशनर टेलर स्वयं कहता है पीर अली स्वयं साहसी और