पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३५३

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अध्याय ३ रा] [बिहार जिस प्रकार की भविष्यवाणी का अच्चारण कर; भारतभूमि की शानमें रंचभी दाग न लगाते हुमे पीर अली मौत के द्वार से प्रातःस्मरणीय महान् देशभक्तों के समुदाय में ना पहुंचा। ___ “मेरे लहू से हजारो वीर अठ खडे होंगे !" अस वीर हुतात्मा की भविष्यवाणी झूठी नहीं हो सकती थी; न हुी। अस के फॉसी जाने का समाचार सुन कर दानापुर की अत्यंत 'राजनिष्ठ ' पलटन २५ जुलाबी को अठी अंग्रेजी तोपखाने की पर्वाह न करते हुमे तीन हिंदी पलटनों ने कंपनी सरकार की वदी चीर फाड कर सोन नदीपार चल दिया। मुख्याधिकारी मेजर जनरल लॉबिंड के बुढापे से तथा अस में समाये सिपाहियों के डर से गोरी सेना सुन का पीछा न कर सकी । मेजर जनरल अपने बुढापे के कारण भलेही कुछ कर न सके, अधर, क्रांतिकारी पलटनें जिस ओर रुख कर जा रही थी, जगदीशपुर के राजमहल में, ढलती अम्र मे भी भुजाओं तथा तलवार में तरुणों सा तेज दमकता था, और अपनी मूछों में शान से बल देता था, वह वृद्ध वार श्रेष्ठ, वहाँ खडा था। जिस वीरने ता के झण्डे के नीचे सब सिपाही जमा हो रहे थे। स्वतंत्रताप्रेमी जनता तथा सिपाहियों के सभी जतन लगभग हर समय विफल कर देनेवाला अक महान दोष दीख पडता था और वह था सुयोग्य नेता की कमी! शाहबाद जिले में कम से कम जगदीशपूरने तो जिस कमी को पूर दिया था और अिसीसे सिपाही सोन पार हो कर सीधे वहीं गये। वहाँ अन्हे स्वाधीनता का युद्ध चलानेवाला सुयोग्य नेता मिलानेवाला था। वीरतासे छलकता, अद्वितीय परा दृढमति (धर्म) हठीला था। बेढंगा रूप, क्रूर तथा कठोर चेहरा होते हुमे भी वह शान्त, संयमी था। बोली तथा चालचलन सम्मानशील थे, जिस तरह के लोग, अन की बजेय टेक के कारण, खतरनाक दुश्मन होते हैं और अनकी कठोर आन के कारण, कुछ हद तक, आदर और प्रशंसा के पात्र होते है।"