पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३५६

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अग्निप्रलय] ३१२ ..[तीसरा खंड सुघर जाने पर तुम पटना जाओगे यह भी सत्य है । किन्तु किस की सेवा में ! सो बात दूसरी है। मिसी समय दानापुर के विद्रोही कुँवरसाइब को चंगा करने के लिसे औषधि ले आये। कुंवरसिंहजी! मन काहे की देरी ? "इम मातृभूमि की सौगंध लेते हैं, हमारे धर्म की शपथ, आप की शपथ ! अब म्यान फेंक दीजिये; स्वराज्य के लिये तलवार संवारिये। आप ही हमारे राजा, नेता, सेनापति ! आप राजपूत-कुल-भूषण! अब आप रणमैदान में चलिये । अन स्वातव्य-प्रेमी सिपाहियोंने मिस तरह हो-हला मचाया । कुँवरसिंह के ब्राह्मण पुरोहितने भी वही मति दो; और शव को चीरने के लिओ तडपती अस की तलवारने भी असके पास यही कानाकानी की। तब हाथी पर से पटने जाने की भी निसे शक्ति न थी, वह ८० वर्ष का बूढा वीर अपनी रुग्णशय्या से फुर्ती से अठा और ठेठ समरांगणमें जा डा। अिस के बाद विद्रोही सैनिक जगदीशपुर से शाहाबाद जिले के प्रमुख नगर आरा को आये। वहाँ का खजाना लूट कर अंग्रेजों के बंदिगह, कार्यालयों तथा ध्वजों को तोडफोड डाला। अन्त में अक छोटे किले की ओर मुडे । चतुर अंग्रेजों ने बुरे समय में रक्षा का स्थान बना कर वहाँ शस्त्रास्त्र, गोलाबारूद, अनाज तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं का सग्रह कर रखा था। मिन मुट्ठीभर अंग्रेजों के लिओ पटने से पचास सिक्खों का मेक दस्ता भी भेजा गया था। कुल ७५ आदमी पूरी सिद्धता के साथ जिस बुरे समय की चिंता कर रहे थे वह आखिर आ पहुंचा । क्रांतिकारियों ने किले को घेर लिया। जब ये २५ मोरे अपने ५० सिक्ख रक्षकों के साथ बड़ी टेक से प्रतिकार कर रहे थे, तब क्रांतिकारियों ने कोमी चढामी न की; बस, घेरा दृढ कर के रह गये । शायद अन्हें लगा होगा कि किला सहज में हाथ आयगा,

  • "दि ब्राह्मणस् इव अिनसामिटेड हिम टु म्यूटिनी अॅण्ड रिबोलियन।" मेजर बायर्स ' ऑफिशिमल डिस्पॅच, (अर्थात् बाह्मणोंने कुँवरसिंह को विप्लव तथा बलवे के लिअ भडकाया)