पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३५७

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अध्याय ३ रा]. ३१३ [बिहार चढामी कर आदमी तथा समय गॅवाने की आवश्यकता ही नहीं है। शायद आसपास के प्रदेशपर तथा अंग्रेज छावनियोंपर नजर रखनाही अधिक महत्त्वपूर्ण मालूम हुआ होगा । कुछ अिन कारणों से और कुछ अिस कारण से, कि किले की तोपें जोरदार मार कर रही थी, हमला करने के बदले सिपाहियों ने भी तोपों की मार शुरू की। क दो जगह सुरंग अडाये गये। थोडे ही दिनों में किले के पानी का खजाना खुटा । तब शर सिक्ख अंग्रेजों की छटपटाहट देख न सके। २४ घंटों में अन्हों ने किले में अक कुआँ खोद डाला और साथ साथ वे राक्षसों के समान लड भी रहे थे। कानपुर के गोरों की क्या दशा हुी थी अिस की पूरी जानकारी होने से किले के गोरे, शर्ती शरणागति के लिअ सिद्ध न थे। जब, अिन गोरों के साथ किलेमें सिक्ख सैनिक भी लडने की बात क्रांतिकारियों को मालूम हुआ, तब वे क्रोध से पागल हो गये क्यों कि, फिरंगीयों को हिंदी सैनिकों के घेरने की बात न रही, वह तो कुँवरसिह के गुरु गोविंदसिंग के चेलो को घेरे में पकडने की बात हुश्री सिक्ख असाधारण शूर किन्तु नीच, देशद्रोही, थे। इर शामको अन्हें हर तरह से अनके कर्तव्य का भान कराने की कोशिशें की जाती थीं। क्रातिकारी दूत खम्भे की ओट खडे होकर चिल्लाकर अपदेश देते, “ओ वाह गुरुदे सिक्खो! फिरंगी की सहायता कर तुम किस नरक की कमानी कर रहे हो ? जिन्होंने अपना स्वराज नष्ट किया, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की विडंबना की और जिन्होंने अपने धर्म को अनाथ कर दिया अनकी ओरसे लडकर, प्यारो । तुम किस नरक की सामग्री जोड रहे हो?" अन सिखखों को क्रातिकारी धर्म, देश तथा स्वाधीनता की शपथ देते । अंतःकरण को पिघलानेवाली प्रार्थना करते और फिरगी का साथ छोडने का आग्रह करते । अन्त में अन्हें धमकी भी दी जाती कि यदि अत्याचारी फिरगियों की सहायता करने से तथा देशद्रोह करने से वे बाज न आयें तो अन सब को कत्ल कर दिया जायगा । किन्तु अिन सभी अपायों का सिक्खोंपर कोमी असर न होता; वरंच अिस के अत्तर में वे क्रांतिकारियोंपर गोलियों की वर्षा करते; और अंग्रेज अन्हे 'शाबाश, शामाश' कह कर तालियाँ पीटते।