पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३६१

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अध्याय ३ रा] .३१७ [विक्षर तीन बार मिन तोपों पर हमला किया। तीनों बार वे आग उगलती तोपों के बिलकुल नजदीक पहुंच गये थे, किन्तु अंग्रेजी तोपें धडधडाती रहीं। तब कॅप्टन हेस्टिंग्ज हॉफता हुआ आकर सेनापपि आयर को बोला 'देखो हमारी गोरी पैदल सेना भी पीछे धकेली जा रही है; मालूम होता है हमारे हाथों से विजय छटका जा रहा है। यही कचवावध और मध घंटे तक जारी रहता तो कुंवरसिंह पूरी जय पाते । किन्तु 'विजय की सम्भावना दूर दूर जाती दीख पडनेपर, पीछे हट जाने के पहले अक बार, निराशा के आवग से, जोरदार धावा बोल देने की अंग्रेजोंने ठानी । आयरने संगीनोंका हमला करने की आज्ञा दी 1 तात्काल गोरे सैनिक कातिकारियों की हरावल पर तीर की तरह टूट पड़े। तोपों के मुंह में चढ जानेवाले क्रांतिकारी संगीनों के हमले के सामने क्यों न ठहर सके जिसका कारण यद्यपि बताना कठिन है, किन्तु बात ठीक है। आयरने अन्हें जंगल में भगा दिया और वह सीधे आरे के किले की ओर चला । वहाँ पहुँच कर असने धेरे गये गोरों की मुक्तता की। आरा फिर से अंग्रेजों के हाथ में आया। आरा का घेरा कुल आठ दिन रहा । मिन आठ दिनों में घेरा दृढ रख कर और दो लडालिया, भुस बूढे राजपूत वीर को, लडनी पड़ीं । अस के जैसी फुर्ती, साहस और वीरता अस के अनुयायियों में न होने से, आयरके इरा देनेपर कुंवरसिह को जगदीशपुर तक पीछे हटना पड़ा। किन्तु, धेरे से मुक्त सैनिकों से पुष्ट अग्रेजी सेना से भिडने के लिओ जगदीशपुर के सभी लड़ने योग्य लोगों को भरती करना शुरू किया। अंग्रेजों को कुंवरसिंह की क्षमता का कुछ कम परिचय न हुआ था। भय था, कि वह मारापर चढ़ आयेगा सो, असके पहले आयर जगदीशपुर पर मया। अिस अनुशासन-पूर्ण विजयी अग्रेजी सैनिकों के साथ अपनी राजधानी की सीमा पर, पहले से दिल बैठे अनुयायियों के बलपर सीधे टकराना असम्भवसा दीखने पर कुंवरसिह को कुछ चिता हुी। भैसी. दशा में वृकयुद्ध (गेरिले युद्ध) का अवलबन कर, दो कडी मुठभेडों के. बाद वह जगदीशपुर से बाहर हो गया। निदान, १४ अगस्त को आयरने