पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३६३

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VALI NEYAR PANA STERSTCHERY अध्याय ४ था दिल्ली का पतन जब अंग्रेजों का तीसरा सेनापति भी दिल्ली जीतने की आशा छोड त्यागपत्र देकर चला गया, तब ब्रिगेडिअर जनरल विल्सन ने अस का स्थान लिया । अस समय, क्रांतिकारियों के जोरदार हमलों से पागलसे बने अग्रेज सैनिक निराश होकर अत्यंत गभीर चर्चा कर रहे थे, 'अब घेर अठा लिया जाय तो कैसे ? । यदि अस समय घेरा अठा लेने का निर्णय अग्रेज कर लेते, तो यह कहना कठिन है कि १८५७ की क्रांतिका क्या रुझान होता । यही वह क्षण था, जब कि क्रांतिकारियों से किये अनेक पराभवों से अधिक हानि अग्रेजी को अगनी पडती । कातिकारी सेना अक ही स्थान में अटक पडनेसे दिल्ली को घेरा डालने में अंग्रेजों को आक्रमण तथा बचाव के लिये सुविधाजनक स्थान अनायास प्राप्त हुआ था। यदि यह सेना मेक ही स्थान में अटकी रहने के बदले प्रांतभर में फैल कर वृकयुद्ध शुरू करती तो थोडे ही समय में अंग्रेजी सेना को कातिकारियों के आगे आत्मसमर्पण करना पडता; किन्तु दिली के घेरेसे रणक्षेत्र सकीर्ण बन गया । अबतक अंग्रेजोंपर अनहद दबाव नहीं पडा था; झुलटे क्रांतिकारियों के मेक ही स्थान में सडते, रहने से अन्दीपर हमले करना अग्रेजों को सुविधापरक हो गया था। जैसे समय में घेरा झुठा लेना तो क्रांतिकारियों को, बॉध तोडकर सारे प्रदेश में सैलाव