पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३६८

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अभिप्रलय ३२२ [ तीसरा खंड तक अपनी सीमा बढा पाये थे, असे ५० हजार सैनिक अस समय दिली शहर में थे । किन्तु अिन सूरमाओं का नेतृत्व कर विजय प्राप्त करनेवाला भेक भी नेता होता तो अच्छा होता । जो लडे और लडते लडते पराजित हुभे अन ५. सशस्त्र वीरों की जितनी भी प्रशंसा की जाय, थोडी है। समर्थ नेता के न रहते भी जितने दिनों तक वे कैसे टिक सके यही आश्चर्य है । जिस सम्राट को अन्हो ने सिंहासन पर विराजमान किया था, असे भी अिन स्वयं-नेताओं को मेक सुयोग्य सेनापति देने की चिंता बेचैन कर रही थी। असने काफी ढूंढा पर कुछ न पाया। बख्तखों को सब सत्ता असने सौप दी ही थी। और तीन सेनापतियों की नियुक्ति सेना के सुपबघ के लिसे की थी। फिर असने तीन सैनिक तथा तीन नागरिकों की अक समिति बनाकर असे सेना की सुखसुविधा का काम सौंपा था। किन्तु ये प्रतिनिधि किसी तरह के सुधार करने की क्षमता न रखते थे। जिस स्वदेशमी सम्राट् को संदेह हुआ कि कहीं अस के ही दोष से या सर्व-सत्ता-प्रमुख होने से अच्छे अच्छे लोग अस का पक्ष छोड जायेंगे और क्रांतिकार्य का सर्वनाश करेंगे। अिस से अपने यह प्रकट घोषणा की, कि वह सम्राटपद का त्याग करने को सिद्ध है। भारत फिर से अग्रेजी शासन का देश होने, विदेशी मडराते गिद्धों के, लम्बे समय तक विपन्न दशा में पडे हिंदुस्थान की, ऑतों को नोच खाने, सदा के लिओ गुलामी की गर्ता में सडने की अपेक्षा, अिस बूढे मुगल ने घोषित कियाः मेरे शासन के बदले जो कोमी सज्जन स्वराज्य और स्वाधीनता की प्राप्ति भारत को करा दे असके हाथ मैं सम्राटपद सौंप देने को तैयार हूँ ! " जयपुर, जोधपुर, बिकानेर, अलवार आदि संस्थानों के महाराजाओं को असने अपने हाथ से यो पत्र लिखे थे __“मेरी यह तीन मिच्छा है कि चाहे जो मूल्य दे कर, हर अगय से, हिंदुस्थान से फिरंगी को भगा दिया हुआ देखें । मेरी यह तीव्र अिच्छा है कि समस्त भारत स्वतंत्र हो जाय। किन्तु स्वाधीनता के लिओ लडे जाने-वाले अिस क्रांतियुद्ध को विजयमाला तभी पहनायी जायगी जब, कोमी भैसा व्यक्ति, जो राष्ट्र की भिन्न भिन्न शक्तियों को