पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७

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अध्याय १ ला ] ५ [ स्वधर्म और स्वराज्य

इस अनुदार उपेक्षा से भी अधिक विश्वासघातक, धोखा - देह और १८५७ की क्रांति की मूल भित्ति ही को बदलकर उसे विकृत रूप देने-वाली अजीब सूझ अंग्रेज इतिहासकारोंने दी है, और उसी का हूबहू अनुवाद उनके सामने दुम हिलानेवाले भारतीय चापलूसोने किया। वह सूझ है चबाकर चिकनाकर के कहना कि इस क्रांति का मूल कारण था चरबी लगाये काडतूस! अंग्रेजी इतिहास तथा अंग्रेजी पैसों से स्फूर्ति पाने-वाले एक भारतीय इतिहासकार कहते हैं, "गाै तथा सुअर की चरबी से लिपटे काडतूसों की केवल अफवाह से ये बेवकूफ के बादशाह, बस, पागलसे हो गये।" किसीने कभी पृच्छा की कि यह कथन कहॉतक सत्य है? "किसी एकने कहा, दूसरेने उस की हॉ में हॉ मिला दी। दूसरा बिगडा, तीसरा उस की हामी भरने लगा और इस तरह भेडिया धसान शुरु हुआ; जिससे कुछ अविचारी सिरफिरे उठे और विद्रोह की आग सुलग उठी।" हम इसका विक्ष्लेषण आगे करनेही वाले है कि लोगों ने अंधे बनकर कहॉतक इसका कारतूसी गप का विश्वास किया। किन्तु जिन्होने केवल अंग्रेजी इतिहास ग्रथोंका बारीकीसे परिशीलन किया है और उसपर कुछ विचार किया है उन्हें स्पष्टतया मालूम होगा कि अग्रेज ग्रंथकारों ने इसी ढकोसलेपर जोर देकर उसीपर ॠतिके जनकत्व को लादने का महान जतन किया है। सोचने की बात है कि यदि क्रांति की पैदाइश केवल काडतूसों से हुई हो तो श्रीनानासाहेब, दिल्ली के बादशाह, झॉसीवाली रानी, रूहेलखड के खान बहादुरखा उस क्रांति मे क्यो कर शामिल हो गये? ये थोडे ही अग्रेजी सेना के सिपाही थे? और तब उन काडतूसों को दॉत से काटने की सख्ती कभी नहीं हुई थी! यदी काडतूसों ही के कारण विशेषत: और पूरीतरह क्रांति की आग भडकी हो तो अंग्रेज गवर्नर-जनरल के आज्ञापत्र के निकलनेही, कि "अबसे उनका (काडतूसोंका) चेलन बंद कर दिया जाता है, "क्राति शान्त हो जानी चाहिये थी। ग. ज. ने तो सैनिकों को छूट दी थी कि "चाहे तो वे अपने हाथों काडतूस बना लें। " किन्तु न सिपाहियों ने वैसा किया न नौकरी को लाथ मार इस झझट से फ्ट्से निकल गये; बल्कि सैनिकों युद्ध के राही बनना स्वीकार किया सो क्यों? सैनिकही केवल नहीं, किन्तु सहस्त्र सहस्त्र शान्तिप्रिय नागरिकजन, राजा महा -