पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७०

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अमिप्रलय] . ३२४ [तीसरा खंड अक हिस्से में अमडा आंदोलन, दूसरे हिस्से की आलस्य-निद्रा से अपने आप मारा गया । जैसी स्थिति का सामना करते हुअ अगस्त के अन्ततक अंग्रेजों को आक्रमण करने का कोभी मौका न देकर गोरी सेनापर लगातार हमले जारी रखे। क्या कोश्री कह सकता है, कि यह स्वराजनिष्ठा का विलकुल मामूली प्रमाण हैं? ___जब सुयोग्य नेता के अभाव में क्रांतिकारियों की यह सारी वीरता तथा निष्ठा प्रभावी न हो सकी, तब अंग्रेजों के पक्ष में निकलसन जैसे सेनापति का नेतृत्व प्राप्त था । दिल्ली में आज पहलेपहल निराशा का वायुमण्डल पैदा हो गया था। नमिचचाले तथा बरेलीवाले अक दुसरे को मिस स्थिति के लि दोषी ठहराना चाहते थे। बागी सिपाही समय पर वेतन पाकर भी. अधिक वेतन मॉगने लगे और मांग पूरी न होने पर दिल्ली के धनी लोगों को लूटने की धमः कियाँ देने लगे। तब सम्राट् की आज्ञा से बस्तखाने सिपाहियों के अगुवाओं, सिपाहियों और दिल्ली के प्रतिष्ठित नागरिकों को परामर्ष के लिअ अक सभा में बुलाया और सब से पूछा 'रण या शरण १ पारी सभाने 'शरण नहीं; रण- रण-रण' की गर्जना से गंगन गूंजा दिया। जितना प्रचंड अत्साह देखकर सब ओर आशा का वायुमण्डल बन गया । क्रांतिकारी सेनाने नीमच और बरेलीवालों समेत नजफगढ पर चढामी कर अंग्रेजों की तोपें छीनने का निश्चय किया। वहाँ पहुँचने पर नीमचवाली पलटन ने बरेलीवाली पलटन के पास डेरा डालना स्वीकार न किया। दोनों ने बख्तखा की, सब मिल कर चढाी करने की, आशा न मानी और नीमचवालों ने अक पडोसी गाँव में डेरा डाला । अंग्रेजों को अस का पता लगते ही निकल्सन आवश्यक चुनिंदे सैनिक लेकर नजफगढ पर फुतीसे चढ आया। अचानक असने अलग डेरा डाले-वस्तखों की आज्ञा ठुकरा कर-नीमचवालों पर धावा बोल दिया। क्रांतिकारी सेना बिखरी हुी, असावधान तथा अव्यवस्थित, जहाँ निकल्सना की सेना अनुशासित, चौकन्नी तथा शस्त्रास्त्रों से लैस ! तब और क्या हो सकता था ? नमिचवाली पलटन का सफाया हो गया। अस पलटन के सैनिक असाधारण वीरता से लडे । शत्रुने भी अनकी वीरता को सराहा । किन्तु