पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७२

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अमिप्रलय ] ३२६ [तीसरा खंड बिलकुल न करते थे। फॉरेस्ट लिखता है, " हमारी सेना के हिंदी जवानों ने अतुल शौर्य तथा दृढता दिखा कर, सब से बढ गये। मेक के बाद अक लाशें फडकती फिर भी अन्हों ने अपना काम बन्द न किया। अपने से कोमी आदमी बम से मर जाय तो अकाघ क्षण वे काम रोकते, मृतक के लिये काध ऑसू बहाते, लाश को पास के लाशों के ढेर में सरका देते और, बस, अस भयंकर स्थान में काम में लग जाते। " अंग्रेजों के मातहत हिंदी सैनिक मितने अनुशासन पूर्वक काम करते थे और दिली के हिंदी सैनिक-अपने ही अधिकारी के मातहत-किनारा कसते थे। अिस भेद से हमें क्या ही महत्त्वपूर्ण पाठ मिलता है! अपने आधि. कारियों को योग्य सम्मान देकर अन की माज्ञा के हर अक्षर पर अमल करना ही अनुशासन का मुख्य सूत्र है। ठीक मिसी सिद्धान्त को पैशेतले कुचला जाता था। बहुत सारा दोष अक्षम अधिकारियों के सिर और रहा सहा अनुशासन न पालनेवाले सिपाहियों पर आ पडता है। और, इद हो गयी मन तोडनेवाली निराशा के कारण ! १४ सितम्बर की पहली किरणें पड़ीं। अंग्रेजी सेना के चार हिस्से किये गये, जिसमें से तीन विभाग निकलसन के मातहत बा पासपर तथा अक मेजर रीड के मातहत दाहिने पासे पर रखकर काबुल दरवाजा तोडकर दिल्ली में प्रवेश करने की सिद्धता हुश्री। , सूरज अगते ही, दिनरात आग अगलनेवाला अंग्रेजी तोपखाना अका. अक शान्त हो गया। तब अंग्रेजी सेना में अकाओक थोड़े समय तक सन्नाटा छा गया और तुरन्त ही क्षणार्ध में निकलसन की सेनाने किले के परकोटे पर धावा बोल दिया। कश्मीर बुर्ज में पडे छेद से पहला सेनाविभाग अंदर घुसने लगा। क्रांतिकारियों की तो धडधडाने लगी। अस समय खामियों में अंग्रेजों की लाशों का ढेर लग गया। फिर भी कुछ सैनिक कोट तक आ ही पहुंचे। नसेनी लगाकर सैनिक अपर चढने लगे। क्रांतिकारी भी जान हथेली में लिओ लड रहे थे; अंग्रेजी सेना के सैकड़ों सैनिकों को गोलियों से अडा दिया किन्तु