पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७३

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अध्याय ४ था] ३२७ . [दिछी का पतन अिस प्रचंड संहार की भी परवाह न करते हुसे अंग्रेज सेना आगे बढ ही रही थी। निदान, छेद बहुत चौडा बनाकर वे अंदर घुसने में सफल हुसे। दिल्ली के कोट का प्रतिकार खत्म हो गया और अंग्रेजों ने विजय की तुरही बजायी। अिसी तरह पानी बुर्ज के पास पड़ी दरार में भी कचवाधव जारी रहा और अंग्रेजी सेना के दूसरे विभाग ने चरा चप्पा भमिपर लडकर मारते और मरते हु दरार को लाँघ कर दिल्ली के अंदर प्रवेश किया। तीसरा सेनाविभाग कश्मीरी दरवाजेपर चढ गया था । जब ले. होम तथा सॉकेल्ड वहाँ पहुँच कर सुरंग से उडा देने के यत्न में थे, तब कोट से, खिडकियों से, हर जगह से गोलियों की वर्षा हुी। कश्मीरी दरवाने के पास की खाओं पर जो लकडी पुलिया थी, उडा दी गयी थी। केवल अक तख्त चहॉ दीख पड़ता है। ठीक है। मेक मेक कर के चलो, बढो । अरे, यह साट मर गया; यह महादू गिरा-चिंता नहीं ! वह देखो होम आगे बढा-वह बढा और दरवाजे के पास डाअिनामाअिट रख आया । असे के पीछे अस सुलगाने लोग आगे घसे । ले. किल्ड गोली खा कर गिर पडा। पड़ने दो! के. बर्जेस क्या देखते हो ? आगे बढो । है; तुम भी गोलीसे गिरे ? चिंता नहीं; गिरते गिरते तुमने सुरंग तो सलगा दी है। क्या ही भीषण धमाका | सारा कश्मीरी- दरवाजा उड गया । किन्तु लडात्री के हंगामे में सेनापति के कान में यह धमाका न पडा; वह कश्मीरी-दरवाजा खुलने की राह देख रहा था । अब क्या करें, आगे थुस पडे या नहीं ? असने विजयी तुरही की ध्वनि न भी सुनी हो, असे आये गये वीरवरों की यशस्विता में पूरा विश्वास था । कॅपबेलने चढाी की आज्ञा दी। खामी में गिरे किन्तु अमर विजयी सैनिक देख अंग्रेज कश्मीर- दरवाजे के खंडहर से दिल्ली में घुस गये। __मेजर रीड के नेतृत्व में चौथा विभाग दाहिनी ओर से काबुली-दरवाजे पर चढ गया था। जब ये सैनिक सब्जीमण्डी तक ना पहुंचे, तब अन के प्रतिकार के लिखे दिल्ली से आगे बढनेवाले सैनिकों से अनकी मुठभेडे हुी । मेजर रीड खेत रहा, जिस से अग्रेजी चढाी रुकी और सब गडबडी मच