पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७५

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अध्याय ४ था] ३२९ [दिली का पतन अग्रेजी झण्डे लहराये गये। सब सेना लढते हुसे बर्न बुर्जतक पहुँची। हॉ, अिंस के बाद असुरक्षित तोपें, निर्जन टीले और वीरान खेतों के बदले ‘मारो फिरंगी को ' के भीषण नारे सुनायी पडे। यहाँ क्रातिकारियों ने गोलियों की बाढ पर बाढ चलायी। पग पगपर भूमिपर रक्तपात और मत्यु के चिन्ह मिलते थे। जो अंग्रेज सैनिक विजय के अन्माद में अंदर घुस आये थे वे फिरसे पीटे जानेपर पीछे हटने लगे। अंग्रेजी सेना पर पड़ी भार को देख निकलसन शेर-सा आगे बढ़ा। अस का प्रण ही था. 'शूर वीर के लिये ससारमें कुछा भी असम्भव नहीं । । अत्तेजित निकल्सन जब वॉटर बॅस्टियन से निकल कर गली में घुसा, तब फिर अकबार घमासान युद्ध होने लगा। गली की जिस दो सौ गन की जगह में पानिपत का छोटा सस्करण दिखायी पडा। गोरा देखा नहीं, और क्रांतिकारी सूरमा ने असे गोली से अडाया नहीं । छज्जों, छाजनों, खिडकियों, बरामदों, ओसारों से यह हठीली स्वाधीनता-प्रेमी गली अपने अनगिनत मुखों से आग अगल रही थी । निकल्सन को भी असने पीछे हटने पर मजबूर किया। शूर जैकोब भी मारा गया। निकल्सन; अब तुम जरा आजमा देखो। तुम्हे छोड अन्य सभी अफसरों को यह गली निगल गयी है। स्वातंत्र्य देवता का मंदिर बनी ओ गली ! वीरता का घर बनी ओ पवित्र गली देखो अब निकलसन स्वयं चढ आ रहा है। अब ठीक सामना होगा । पाणों की बाजियां खेली जाने लगीं। अकामेक मानो आकाश से गाज गिरी और अंग्रेजी सेना में कुहराम मच गया। निकलसन ! हाय, निकलसन, कहाँ हो .. किसी क्रांतिकारीने घात लगाकर असपर वार किया और निकलसन भूमिपर लोटने लगा। अंग्रेजी सेनामें 'इटो, हटो' की ध्वनि अठी, जहाँ क्रांतिकारी सेना मे 'काटो, काटो' की ध्वनि गूंज अठी। कैसी मृत्युमुखी गली है ! असकी लम्बाभी का चप्पा चप्पा अंग्रेजी लाशों से पट गया था। अिस विजयी गली से पीछे हट कर अग्रेजी सेनाविभाग काश्मीरी दर वाजे के पास पहुंच ही पाया था. कि जुम्मा मसजिद की ओर गये दूसरे • विभाग ने पीछे हट की तुर ही बजायी। मसजिद तक पहुंचते हु अन्हे