पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७६

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अग्निप्रलय ] [तीसरा खंड कोजी रोक थाम न दिखायी दी थी। हॉ, वहाँ पहुँचते ही क्रांति क वरियोषोंने आकाश भर दिया और फिर वहाँ जो भिडन्त हुभी असमें कम्बल स्वयं घायल हुआ। जिस तरह दिली के आक्रमण का पहला दिन समाप्त हुआ। असा भीषण दिन देखने का दुर्भाग्य अंग्रेजी सेना के भाग में कभी न बदा था चार सेना-विभागों से तीन के सेनापति घायल हु; ६६ अफसर तथा ११०४ सैनिक मारे गये । अितना मूल्य दे कर क्या हाथ लगा जिसका हिसाब जब मुख्य सेनानी विलसन करने लगा, कि दिल्ली का चौथा हिस्सा हाथ आया है। भय, चिंता, तथा निराशा से जनरल विलसन का मस्तिष्क घूमने लगा और अब हर ओक सुचित करने लगा 'हट जाना ठीक रहेगा।" अबतक दिल्ली पर दखल नहीं हुआ; अक गली मेरे अितने वीर खा गयी, और सहस्रों क्रांतिकारी, जीवित रहे हुओं को युद्ध का आव्हान देही रहे है। अब सब की बलि चढाी जाय या पराजय की अपकीर्ति सही जाय ! लौट जाना ही अच्छा रहेगा;" यह था विलसन का विचार । रुग्णालय में रखे गये निकलसन के कान में यह भनक पडी, तब वह तिलमिलाकर बोला, ' लौट जाना ? परमात्मा की कृपासे अब भी मुझ में अितना बल है, कि लौट जानेवाले विलसन पर गोली चलाऊँगा ।। अिस मृत्युशय्या पर पडे वीर के ये उद्गार सब जीवित बचे गोरों को जंच गये और १४ सितंबर की रात में जीती हुी भूमिपर अग्रेज डटे रहे। अंग्रेजी युद्ध समितिने जनरल विल्सन के पीछेहट का प्रस्ताव न माना । क्रांतिकारी सेनाकी छावनी में रातमें जो हलचलें हो रही थी अस से अंदाजा लगता है, कि अस का सब बल समाप्त हो चुका है असमें अक दल का विचार था, "दिल्ली छोडकर बाहर के प्रदेश में लडाभी की जाय, " जहाँ दूसरे दल का आग्रह था, " हम में से हर अक मारा जाय तो भी दिली न छोडनी चाहिये ।" अंग्रेजों की ओर विरोधी भिन्न मत चाहे जितने हो, बहुमति का निर्णय सिर आँखों पर रख कर सब मिल कर काम में लग जाने में सारे मतभेद विलीन हो जाते थे। यह गुण दुविधा में पडे क्रांतिकारी दस्तों