पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७९

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STRESED FIRST अध्याय ५ वॉ लखनउ जिस दिन चिनहट की लडाश्री में क्रांतिकारियों की जीत हुी, असी दिन अवध की अंग्रेजी शासन का अन्त हुमा और बलने का रूप खुली क्रांतिम परिणत हुआ। सिपाहियों, नरेशों, जागीरदारों, जनता ने लखनअ के खाली पडे सिंहासनपर अपने चुनाव से राजा को गद्दीपर बिठाया और शासन शुरू करवाया। चिनहट की विजय के बाद अक सप्ताह तक जो अंदा- धुंध अराजक मच रहा था वह, आगामी युद्ध की किसी प्रकार की सिद्धता करने के पहले, दबा देने की आवश्यकता थी। जिस से भले ही अंग्रेजों को अक सप्ताह का अवकाश अनायास मिला, क्रांतिकारियों ने पहले लखन का राज्यमबंध ठीक कर देनेपर ही जोर दिया। लखनअ के सूतपूर्व नबाब वाजिद अली शाह कलकत्ते में अंग्रेजों के कैदी थे, जिससे लोगों ने अकमत से अन के बेटे बिरजिस कादिर को लखनअ के सिंहासन पर बिठाया और अप्तके ना बालिग होने से शासन सूत्र, असकी माता हजरत महल को, सौंप दिया । दिछी के राजप्रासाद में बहादुरशाह के बुढापे के कारण राज का कारोबार जिस तरह बेगम जीनत महल ही चला रही थी, असी तरह नाबालिग बेटे के कारण बेगम इजरत महल को राज का बोझ अगना पड़ा। अवध की यह बेगम झॉसीवाली