पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३८

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ज्वालामुखी ] ६ [ प्रथम खड

राजा, कि जिनका सेना से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षरूपसे कोई सबंध न था, सब विद्रोही बन उठे। सो, इससे स्पष्ट हो जाता है कि सैनिक तथा नागरिक, राजा तथा रंक एवं मुसलमान को उत्तेजित करने में कारतूसों के इस आकस्मिक कारणने कोई हाथ नही बँटाया था।

यह भी उपपत्ति उतनीही भ्रमपूर्ण है कि अवधप्रांत को हथियानेमे क्राति का उठाव हुआ। कई जन, जिन्हें अवधके गजवशके भविष्यत् के विषय मे रत्तीभरभी अपनौवा नही था, सरपर कफन बाँघे लडते ही थे न; तो फिर, इसे युध्दमे उनका क्या मन्तव्य था? अवधका नवाब तो स्वयं कलकत्तेके किलेमे कैदीकी दशांमे बैठा था, और अंग्रेज़ इतिहासकारों के कथनानुसार उसके प्रजाजन उसकि राजनीतिसे ऊब उठे थे। यदि यह सच था तो सैनिक, तालुकदार, और नवाब की रियायासे बहुतेरे जन, अपने नवाबके लिये तलवार सॅवारकर क्योकर आगे बढे? किसी बगाली'हिंदूने'उस समय इग्लडमे रहते हुए क्रातिपर एक निबध प्रकट किया था उसमें 'हिंदू' कहता है-" हमे आश्चर्य होगा यह सुनकर कि, कितनेही साधारण जन, जिन्होने न कभी नवाबको देखा था, न आगे कभी देखनेका मौका मिलने की आशा थी, उसका शोकपूर्ण इतिहास बताबताये जानेपर अपने झोपडो मे रोते पीटते रहे। और, इस बात की जानकारी भी हमें कभी न होगी कि कितनेही सैनिक सिपाही वाज़िदअलीशाहपर गुजरे अत्याचारो का प्रतिशोध लेनेके लिए-मानो यह अत्याचार स्वयं उनपर ही हुए हो, -अपने आँसुओंको पोछकर हरदिन, उस प्रतिशोधके लिए लडने को प्रतिज्ञाबद्ध होने थे?" सिपाहियों को नवाबके लिये इतना अपनौवा क्योऔ कर पैदा हुआ? और उनकी आँसुओं की झडी क्यो लगी जिन्होंने कभी नवाबको देखातक न था? उत्तर स्पष्ट है; इससे साफ पता लगता है कि केवल अवधप्रात की स्वाधीनता छिन जानेसे क्रातिका प्रस्फोट नहीं हुआ।

अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि चरवीवाले कारतूसो का भय तथा अवध का ग्रहण ये मात्र आकस्मिक तथा अस्थायी कारण थे। किन्तु इन्ही कारणों को यदि हम मूल कारण मान बैठें तो क्राति के सच्चे स्वरुप का दर्शन हमें कभी मालूम न होगा। ऐसी भूल यदि हम करें तो मानना पडेगा कि ये दो कारण न होते तो क्रांति होति ही नही; इससे