पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३८३

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अध्याय ५ वॉ] ३३९ [ लखन आ गया । स्वराज्य के ध्येय से प्रेरित पवित्र अमंग से जिन को अपने श्रेष्ठ अधिकारी पद पर बिठाया, अन्हीं का वे अपमान करने लगे, अन की आज्ञा पर चलने को टालमटूल करने लगे और डर होने लगा कि कहीं क्रांति का परिवर्तन अराजक में न हो जाय । जैसे मौकेपर अमूर्त ध्येय के प्रेम से संगठित होने की क्षमता न रखनेवाले अनुयायियों के अंतःकरण अपनी अजेय वीरता तथा असाधारण व्यक्तित्व से आकर्षित करनेवाला कोभी महान् पुरुष आगे आता, तो वीरपूजा के नाते सब अस के झण्डे तक्ले खडे हो जाते और क्राति विजयिनी होती। अक तो, जैसी क्षमतावाला मेक भी नेता न मिला और दूसरे, अनियंत्रित क्राति का अन्त अराजक में होने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होने से अवध की सेना में शहीदों ( हुतात्मा) के बदले पांचों वीरों में अपना नाम लिखवानेवाले ही अधिक थे। जो हुतात्मा थे, अन्होंने निडरता से, "अपराजित और अजेय निधार से--' करेंगे या मरेंगे--तीन सालोंतक युद्ध किया । लखन में सर्वसाधारण सिपाहियों की संख्या, देशपर बलि चढनेवाले हुतात्माओं की अपेक्षा अधिक होने से हजरतमहल के नियुक्त अधिकारियों की "आज्ञाओं का ठीक पालन शायदही कोभी करता था, जिस से सिपाही अच्छु. खल, पीडक, अनुशासनशून्य तथा मनमौजी बनते गये! । तो भी उन्ही से कुछ वीर श्रेष्ठोने पराक्रम, अदात्त साधना की धुन तथा स्वाभाविक अच्च प्रवृत्तियों का विकास सिपाहियों में किया था। और अिन शूर व्यक्तियों ही ने आग्रह किया तब २० जुलामी को रोसडेन्सीपर जोरदार इमला चढाना तय हुमा। २० जुलामी को, भितने दिनों से आग अगलनेवाला तोपखाना अका अक शान्त हो गया। लगभग सबेरे ८ बजे क्रातिकारियों ने रेसिडेती की फसील के नीचे सुरंग भर दिये । अन का घडाका होते ही अस भग-तट से सिपाही अंदर घुप्त पड़े; साथ साथ तोपखाने ने भी अंग्रेजों को भुनना शुरू किया । क्रातिकारी सेना हर तरफ से अग्रेजों पर टूट पडी-दान की ओर, 'अिनेन के घरपर, कानपुर बॅटरी पर । अिस आखरी स्थान पर टूट पडे मिनिकों ने अंग्रेजी तोपों पर सीधा धावा बोल दिया। बारबार वे चढ जाते।