पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३८४

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अग्निप्रलय] ३४० [तीसरा खंड अन का वीर नेता स्वराज का झण्डा अँचा कर खामी में कूदा; और जोरसे पुकार ने लगा 'आ जाओ, बहादुरो, आगे बढो । खाली पार कर वह अपर चढा और अंग्रेजी तोपों पर स्वराज का झण्डा गाडने की चेष्टा करने लगा।* किन्तु वह नेता गोली खाकर गिर पड़ा। यह समय था, जब हजारों की संख्या में अस की लाश पर से आगे बढ कर अस हुतात्मा की मौत का बदला शत्रु के खून से, लिया जाना चाहिये था। किन्तु आगे घुस पड़ने के बदले सैनिक अनुचरोंने अलटे मुँह घुमाये और हट गये। किन्तु, धन्य के निसनीवालो ! अन पांचवें वीरों की तरह तुम कायर न बने, आगे बढे, सच्चे मर्दो की तरह आगे बढे ! खामी में निसेनी लगाओं और अंग्रेजी तोपखाने के गोलों की परवाह न करते हुझे भूपर चढो। आगेवाली पाँति खेत रही-अच्छा, चिंता' नहीं-दूसरे चलो आगे ! अरे, किन्तु और लोग है कहाँ ? विद्रोहियों और अंग्रेजों में यही तो भेद है। अपने भाअियों का रक्त अग्रेज व्यर्थ में कभी बइने न' देगा। मेक गिरा तो पीछे से दस आदमी अस की जगह लेने दौड पडते । अस्तु । जो सिपाही पीछे हट कर भाग गये वे कहाँ गये होंगे अिस की हमें रंच भी क्षिति नहीं। किन्तु, हे वीरवर । हे हुतात्मा! तुम निश्चितरूप से स्वर्ग में पहुंचे हो। कायर, जीवित प्रेत के पापी स्पर्श से स्वराज का पवित्रः झण्डा गंदा न हो जाय अिसी लिओ जिन्हों ने असे अत्तोलित रखा, शत्रु की आग अगलती तोपों पर असे फहराने के हेतु जो वहॉतक घुस गये, अन के अस पवित्र तथा गौरवपूर्ण रक्त से यह झण्डा सदा पवित्र रहेगा, हमेशा देवी, आभासे दमकता रहेगा। जैसे ही छिन और लहूलुहान हाथों में स्वराज का ध्वज फबता है। जिन की कलाअियाँ क्रांतिकार्य में लहूलुहान नहीं हुीं, वे अिस स्वाधीनता के पवित्र झण्डे को स्पर्श कर असे भ्रट करने की चेष्टा न करें। पहली चढामी रोक कर पीछे हटा देने के बाद, प्रतिदिन क्रांतिकारियों, तथा अंग्रेजों की छोटी मोटी भिजामिया हुआ करती थीं । रेसिडेन्सी के घर

  • गबिन कृत म्यूटिनी; पृ. २१८.