पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३८५

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, अध्याय ५ वाँ] ३४१ लखन अडा देने में तो विद्रोहियों ने कमाल कर दी । अपर से तोपों की भीषण मार और नीच से सुरंग के विस्फोट ! भेक भी अंग्रेज नहीं जानता था, कि भूमि के नीचे से धडाका हो कर वह कब फट जायगी और अस के पेट में वह कब समा जायगा । ब्रिगेडियर अिनेस का अंदाजा है कि कुल ३७ बार सुरगे अडायी गयीं; साथ में क्रांतिकारी तोपखाना की लगा तार घडधडाता रहता था ही। हर पक्ष अक दूसरे के निरादों का पता लगाने अपने गुप्तचरों को भेजता और हमेशा अनमें भयंकर भिडन्ते हुआ करती। कभी बार किले की दीवारों के कान लग जाते और अंदर और बाहरपालों की कानाफूसियाँ मेक दूसरे सुन लेते और सब अिरादे फक हो जाते । की बार अंग्रेजी झण्डेपर ठीक गोलियों का निशाना साध कर सिपाही अपना मनरजन करते तथा रात होते ही अंग्रेज दूसरा झण्डा असी जगह खडा कर धोखा देते ! अिस प्रकार भीषण लीला करते हुओ लखन की रणभूमि अपना विकराल जबडा खोलकर मृत्यु का अट्टाहास करती! हॉ, अग्रेजों का साथ देनेवाले हिंदी सिपाहियों का देशद्रोही बर्ताव देखकर समरांगण में फुदकनेवाले भूत-प्रेत भी -रोते होंगे । हर रात में, किले में जहाँ सिक्ख या हिंदी लोगों का डेरा रहता वहाँ छिप छिप कर पहुंचने पर क्रांतिकारी दूत आवाज करते, " क्यों देशसे निमकहरामी करते हो और क्यों घोंपते हो अंग्रेजी तलवार अपने भाभियों की छाती में ? किसी रात में बार बार मिन प्रश्नों को सुननेपर देशद्रोही सिक्ख विद्रोही दूतों को, स्पष्ट सुनायी देने के बहाने, पास आने को कहते और पास आ जाते ही, छपे हुओ गोरे सैनिकों को मिशारा कर आगे बुलाते ! सिक्खों की अिस नीचता को देख विद्रोही अन्हें गंदी गालियाँ देते हुमे लौट । जाते ! यहाँ के क्रांतिकारियों में अक अचक निशानेबाज हबशी हिजडा था जो पहले नवाब की नौकरी करता था। असने रेसिडेन्सी के अंग्रेजों पर बडा आतंक जमा रखा था । असे वे 'ऑथेलो' के नाम से जानते थे। सर हेनी लॉरेन्स की मृत्यु के बाद अवध का चीफ कमिशनर बना मेजर बक्स अक क्रातिकारी की गोली का शिकार हुआ। लखन के घेरेमें काम आया यह दूमरा चीफ कमिशनर था। किन्तु अंग्रेजी सेना के सुघर