पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३८७

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अध्याय ५ वॉ] [लखन लखन के अंग्रेज बैठे थे । दूरपर कुछ तोपों की गडगडाइट अन्हें सुनायी दी। हवलॉक ही तो आ रहा होगा न ? । अिस आशापूर्ण अत्कंठा से राह देखनेवाले अंग्रेजों को थोड़ी ही देर में पता चला कि क्रांतिकारियों ने फिर से चढामी शुरू की है। पहले कानपूर बटरी, जोहान के घर, बेगम कोठी नथा अन्य स्थानों पर क्रांतिकारियों ने तो दागनी जारी की। अस दिन अन की सुरगों ने बहुत बढ़िया काम किया। अंग्रेजों की किला बंदी में मेक बहुत बडा छंद पडा, जिस में से अन का मेक दस्ता संचलन करते हुमे आसानी से जा सकता था। किन्तु अदर घुसने. वाला दस्ता ही कहाँ था? क्रांतिकारियों की किलाबंदी में जितना बड़ा छेद यदि अंग्रेज कर पाते तो आधे घटे में अन्हों ने अस स्थानपर दखल किया होता। क्रांतिकारियों के कुछ सरमा दोपहर दो बजे तक झूझते रहे। हॉ, अंग्रेजों के मातहत हिंदी लोगों ने वीरता, अनुशासन तथा निडरता से सराइनीय पराकाष्टा की। क्या दुर्भाग्य है ! देशद्रोह में यह वीरता और देशभक्ति में यह कायरता कैसा विरोध । अठो, दौडो और अिस लांछन को कोभी धो डालो ! अब पांच बजे है; चढामी लगभग तोड दी गयी है। फिर भी कोमी दौडो | तुरन्त विजय खींच लाने के लिखे न सही; कम से कम अमर कीर्ति के लिये ही सही ! के. सॉडर्स, सम्हालो ! आनपर जान देनेवाले तथा क्रोघसे बौखलाये वीरों का हमला हो रहा है। देखो, वे आ गये, ये अंगार बने सरमा सीधे धुस रहे है। अंग्रेजी परकोटे से अन्हे रुकावट हो रही है, फिर भी टेक से आगे बढ़ने का जतन कर रहे हैं वे | अिस बॉके समय में अग्रेजो ने तो बद कर संगीने सॅवारी । क्रांति अमर रहे; स्वतत्रता देवी की जय; धन्य वीर, धन्य : खाली हाथों से शत्रू की संगीन छिन ली ! अन्त में अग्रेजी गोली ने असे सुला दिया ! हॉ, किन्तु समरांगण में अपने राष्ट्र को अपमानित होते हुअ असने बचाया और शत्रु भी बखाने असी वीरता का परिचय देकर हुतात्मा के परमपावन रक्तस्रोत में, निदान, वह सो गया। अक गिर; फिर दूसरा बढा, वह भी गिरा और तिसरा भी धन्य धन्य ! तुम वीरता से लडे । अिस लडामी की बराबरी यही लडाी कर सकती थी। किलाबदी के अग्रेजों की संगीनों को छीनने के लि, शेर की