पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३८९

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अध्याय ५ वॉ] ३४५ [लखनभू आधा भोजन काटा गया। जितनी देरी क्यों कर हो रही है ? लखन के छुटकारे जैसे गभीर समय में इवलॉक जैसा शूर योद्धा तुरन्त क्यों नहीं आ सकता? और, अक क्षण की भी देरी न करते हुओ लखनअवाले अपने बंधुओं को छुडाने, विलॉक कानपूर से २९ जुलानी तक गंगापार हुआ भी। अस के साथ १५०० और १३ तोपें थीं; और ' ५-६ दिनों में स्वयं आकर मै तुम्हें छुडाता हूँ' अिस अर्थ के निश्चित आश्वासन का पत्र भी असने लखनअवालों को भेजा था। किन्तु गंगापार होने पर अवध प्रांतमे पग धर ते ही 'यह काम तो मेरे बाों हाथ का खेल है। यह अस का घमण्ड चूर चूर हो गया। अस के सब मीठे सपने मेघों के समान छंट गये। अवध की चप्पा चप्या भूमि प्रतिकार के लिये सिद्ध मिली। हर जमींदार ने सौ-पांचसौ लोग जमा कर स्वाधीनता की लडाभी छेडी थी। हर गाँव में स्वतंत्रता का झण्डा दिखाजी पडता था। यई भयानक दृश्य देख कर हैवलॉक भी कुछ सकपकाया; किन्तु वह निराश न हुआ। वह आगे बढता रहा । अन्नाव में क्रातिकारियों ने अक हलका हमला किया और पीछे हटे। जिस प्रसग के बाद इवलॉक ने खाना खाने जितनीही छुट्टी सैनिकों को देकर तुरन्त आगे बढ़ने की आज्ञा दी। बशीरतगन में भी अक भिडन्त हुी। २९ से इवलॉक को दो हमलों का सामना करना पड़ा और दोनों में अस की जीत हुी। । किन्तु क्या यह विजय ठोस थी ? मेक ही दिन में असकी छोटी सेना का छठवॉ हिस्सा खेत रहा था । क्रांतिकारियों की कोी हानि न हुी थी। यह भी पता नहीं मिला, कि, सचमुच, अनकी हार होनेसे वे भागे थे या अपनी थोडी भी हानि न ई कर शव को सताने का वृकयुद्ध अन्होंने बरता था । और अिसी समय दानापुर की विद्रोही सेना अन्हें मिलने का संवाद पहुंचा। जिस तरह, सब मोर से चिंताजनक स्थिति प्राप्त होने से इंक्लॉक को अपनी चढासी स्थगित करनी पड़ी और ३० जुलामी के दिन मंगलवार को असे पीछे हटना पड़ा।