पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय १ ला] ७ [स्वधर्म और स्वराज्य

बढकर भ्रमपूर्ण तथा मूर्खतापूर्ण उपपत्ति क्या हो सकती है। कारतूसो का भय न होता तो उस भय की तह में होनेवाली मनोगति दूसरे किसी रूप में प्रकट होती और वही क्राति फिरसे घटित होती। अवध छीना गया न होता तो राज्यों के हडप जाने की मनोगति का रूप दूसरे किसी राज्य के विध्वंसन मे दीख पडता। फेच राज्यक्रांति के सच्चे कारण, खाद्यपदार्थों की महॅगाई, बॅस्ताइल कारागार, राजाका पॅरिस से निकल जाना या दावते, ये नही थे ! इन से उस क्राति की कुछ घटनाओ पर कुछ थोडा प्रकाश पडेगा, किन्तु उसमे क्राति का पूरा दर्शन होना असम्भव है। राम-रावण युद्ध में सीताजीका अपहरण एक नैमित्तिक-प्रामगिक-कारण था; सच्चे कारण तो इससे बहुत गहरे और अदृश्य थे।

   हॉ तो, इस क्रातिकी तहमे क्या मूल कारण तथा हेतु काम कर रहे थे जिनके कारण 

हज़ारो वीरों की तलवारे नगी हो कर रणक्षेत्र मे चमकी; मलिन तथा जग लगे राजमुकुटो को फिरसे जगमगाने तथा पैरोतले रौदे जानेवाले झण्डो को फिरसे लहराने की सामर्थ्य पैदा हुई; जिनके कारण, सहस्र सहस्र पुरुषोने अपना खून वर्पोतक बहा दिया; मौलवियों ने जिनका प्रचार किया, विद्वान ब्राह्मणोंने जिसे विजयी होंनेका आशीर्वाद दिया; जिनके विजयी होने के लिए दिल्लीकी मस्जिदो तथा काशी के मन्दिरों से प्रार्थनाए गूजकर देवलोक तक पहुँच गयीं, जिन के लिये यह सब हुआ वे सिद्धान्त- मूल कारण- आखिर क्या थे?

    वे महान सिद्धान्त थे स्वधर्म और स्वराज्य। प्राणोंसे प्यारे स्वधर्मपर छुपे और घातक

आक्रमण होने के लक्षण जब दिखायी देनें लगे तब धर्मरक्षा के लिये उठी मेघगर्जन-सी क्रातियुद्ध की ललकारों में मूल कारणोंका आभास मिलता है, घोखेबाज दुष्ट करतूतोसे ईश्वरदत्त स्वाधीनता का अपहरण कर जब राष्ट्र राजनैतिक पराधीनता की जजीगे से जकडे जाने की बात घ्रुव सत्य बन गयी, तब स्वराज्य प्राप्त करने की पवित्र साधना से प्रेरित होकर जो महाभीषण आघात उन दास्य शृंखलाओं पर किया गया उसी मे क्रातियुद्ध के मूल कारण मिल जाते हैं। अन्य स्थानो मे किसी इतिहास में यह स्वदेश और स्वधर्म की लंगन, अपने राष्ट्रमें उदात्तता की