पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९०

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अग्निप्रलय] ३४६ [तीसरा खंड कानपुर से हैवलॉक की सेना हिलने का सवाद पाते हो नानासाहब ने कानपुर के आसपास के प्रदेशमें अपनी हलचल शुरू की । एवलॉक जब कान. पुर छोड, गगापार होकर अवध में प्रवेश कर रहा था, तभी नानासाइब भी अवध छोड असी गगा के पार कानपुर में प्रवेश कर रहे थे । अिम शिकंजमें कहीं फंस न जाय, अिस लिसे हवलोक को मंगलबारे में ४ अगस्त तक डेरा डालकर रइनाही पडा । हैवलॉकके अक सप्ताह में कातिकारियों को गोतमीतक पीछे खदडने की बात तो दूर रही, इंक्लॉक स्वयं गगा किनारे अक तरह से स्थानबद्ध रहा। क्रांतिकारी सेना फिर वशीरतगज में अससे भिडी। अिन लगातार हमलों से तग आकर असने लखनझू का रास्ता पडा। फिर अक बार बशीरत गजपर असने क्रातिकारियों को भगा दिया। किन्तु वही प्रश्न रहा कि यह सच्ची जय है ? क्यों कि, अिस भिडन्त में एवलॉक के ३०० सैनिक काम आये और बचे हुओ सभ अितने थक हुअ थे कि असे लसन का रुख छोड कर गंगाकिनारे फिर हट जाना पड़ा। अस दिन की गिनतीमें प्रारंभ के १५०० सैनिकों से केवल ८५० बचे पाये गय । अगस्त ५ को मंगलवार को हॅवलॉकके हट जाते ही प्रातिकारियों ने बशीरतगज पर कब्जा जमा लिया और वहपर डेरा डाला ! जिस डेरे में बहुतेरे लोग सुखी जमींदार ही थे । 'कल जितने मार गये, ग जमीदार थे।* अपने देश, अपने स्वराज्य, अपने स्वातव्य के लिअधिन धनीमानी सज्जनों ने अपनी सुकोमल शय्या को त्याग कर हर संकट और विपत्ति का सामना करने का बत लेकर समरांगण में कूद पड़ने की ठानी थी। जिस वीरोत्साह को लक्ष्य कर अिन्नीज लिखता है:--"कमसे कम अवध प्रांत की लडाभी को तो हमें स्वातंत्र्य-समर यही नाम देना पड़ेगा x हॅवलॉक की छावनी के अिर्दगिर्द क्रातिकारी दस्ते जमराज के समान मंडरा रहे थे। ११ अगस्त को इवलॉक ने फिर तीसरी बार बशीरतगंज पर

  • के और मॅलेसन्स ऑिडियन म्यूटिनी खण्ड ३ पृ. ३४० x सिपॉयीज़ रिव्होल्ट.