पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९३

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अध्याय ५ वा ] ३४९ [लखन समाज में व्यक्तित्व के मदगल हाथी के गडस्थलपर सामाजिक मंगल की लगन का अंकुश सदाही लगाया होता है, असी समाजमें श्री और सरस्वति, कीर्ति और स्वाधीनता हमेशा बनी रहती है। इवलॉक जब कानपुर पहुंचा तम पहलीबार असे मालूम हुआ कि नानासाहब ब्रह्मावर्त पर फिर से दखल कर चुके हैं । क्रांतिकारी सेना तथा नानासाहब जिस प्रकार कानपूर की सीमा पर ही भिड जाने से विलॉक तात्काल अनपर चढ़ गया। अस दिन बिळूर की लडाभी में अग्रेज सेना क्रांतिकारियों की हरावल से २० गज पर आ गयी तब विद्रोही ४२ वीं पलटन ने संगीनों की मार शुरू की। अंग्रेज अबतक मानते आये थे कि, सब अपाय थक जानेपर अन्त में संगीनों के हमले से क्रांतिकारियों को डरा दिया जा सकता है। किन्तु आज स्वाधीनता के शूर वीरों ने अलटे अंग्रेजों पर ही संगीनों से हमला किया; साथ साथ अनके रिसाले ने पीछे से अंग्रेजों की रसद मार दी। जिस तरह दोनों ओर से अंग्रेजों पर मार पडी। किन्तु यह सार वीरता और रणकौशल्य अंग्रेजों के समान अनुशासन के साँचे में ढले हो न होने से, धिस पराक्रम और दृढता के बावजूद भी क्रांतिकारी हार कर पीछे हटने पर मजबूर हो । क्रांतिकारियों को हरा कर १७ अगस्त को हॅवलॉक जब कानपूर लौटा, तब असे पता चला कि नानासाहब की सेना केवल ब्रह्मावर्त ही में न होकर जमुना के किनारे कालपी में काफी सेना जमा हुभी है। कालपी, ब्रह्मावर्त, अवघ तथा गंगा के दोनों पासों से हर तरफ से हैरान किये गये । विजयी इवलॉक ने राजधानी में कलकत्तेवालों को लिखा-'हम बडे भयंकर जिच में जिस समय पडे है नयी कुसुक यदि जल्द न आ जाय तो लखन छोड मिलाहाबाद को इठ जाने के बिना, भयकर विपत्ति से अग्रेजी सेना को बचाने का कोमी अपाय न रहेगा।" ___ इवलॉक कलकत्ते के अत्तर की राह देख रहा था। असे बडा विश्वास था, कि अस की मार्थना के अनुसार नयी सेना आ जायगी और ल खन के मुक्तता कर अब तक की सभी हार जीतों पर वह मुकुट चढायगा । किन्तु सहसा असे आज्ञा मिली कि लखनभू पर चढाी करनेवाली सेना का आधिपत्य