पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९६

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अनिमलय ] ३५२ [तीसरा खंड तरह यह प्रबल अग्रेजी सेना अत्याचार करती हुी अवध में घुसती चली । कच्ची शिक्षावाले क्रांतिकारियों से भिडन्त करते और अन्हें भगाते हुमे २३ सितबरें को हॅवलॉक आलमबाग के पास पहुँचा। यहाँ क्रांतिकारियों का अक पडाव था । यहाँ दिनभर घमासान युद्ध होता रहा । क्रांतिकारियों की पाँच तो छिन ली गयी, जिस से मेक फिर लौटानी पडी। रात होने पर भी दोनों दल मैदान में डटे रहे। किन्तु जब क्रांतिकारियोने भॉप लिया कि कीचड़ और दलदल की भूमिपर ही रात में आराम करने की चेष्टा शत्रु कर रहा है, तब अन्होंने आराम का खयाल छोड जोरदार हमला शुरू किया। अस रात में सूमलाधार वर्षा हो रही थी। किन्तु बारिशोंसे बढकर अंग्रेजी सेना का उत्साह लहरा रहा था। क्यों कि, असी रातको दिल्ली का पतन होने के समाचारों ने सब को अत्साहित कर दिया था । निदान, २५ सितंबर का उत्पात मचानेवाला दिन आ पहुंचा । लखन को जानेवाली सड़कों के बदले आडे रास्ते से हॅवलॉक को रेसिडेन्सी की ओर बढते हुमे देख कर क्रांतिकारी तो आग बरसाने लगी, किन्तु अिस भयकर मार को धीरज से सहते हुसे अंग्रेजी सेना आलम बाग से ठेठ चारबाग तक पहुँच गयी; यहाँ का पुल लॉपकर लखना में पग धरना था । अिस मोर्चे पर घमासान युद्ध शुरू हुआ। क. मॉड गोलियों की बौछार से पुल पाटने लगा किन्तु बेकार ! न तो बंद हुभी, न रास्ता खुला । पीली कोठी के पास २१ गोरे मर चुके थे। यहाँ कुछ और काम आये। तो क्या अिस पुल के कारण सारी अंग्रेजी सेना अटक पडेगी ? पास खडे इंक्लॉक के युवक पुत्रसे मॉड ने कहा, कुछ अपाय सुझाओ तो! वह युवक नील के पास ,आकर कहने लगा तोपों से ये विद्रोही पुलसे न हटेंगें; मिनपर सीधा हमला करने की की आज्ञा दी जिये । इवलॉक की आज्ञा के बिना कुछ भी करने से नील ने अिनकार कर दिया। फिर क्या किया जाय ? तब युवक को मेक अपाय सूझा। असने सहसा अपने घोडे को अड. मारी और जनरल हवलॉक की दिशा में असे फेंका; सेनापति से मिलने का बहाना कर वह युवक फिर नील के पास आ पहुंचा और कहा ' हॅवलॉक साहब की आज्ञा है, पुलपर धावा बोल दिया जाय ।' बस, फिर क्या था ! जनरल