पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९७

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अध्याय ५ वा] [लखनभू नील ने धावा बोलने का हुक्म दिया। पहले २५ के दस्ते का नेतृत्व युषक इवलॉक ने किया। तोपें गोले फेंक ही रही थी। अक दो मिनिटों में कितने बचे ? किन्तु देखो, नवयुवक हॅवलॉक पुलपर कूद पडा । शाबाश वीर सिपाही वह डट कर सामने खडा रहा और अपनी बदूक का निशाना ताक।। जरा सा चुका और हैवलॉक के पुत्र के मत्थे के बदले गोली असके टोप में लगी; वह शान्ति से दूसरी गोली दाग ही रहा था कि हैवलॉक से वह मारा गण। स्वाधी. नता के रण में काम आगया ! सारी गोरी सेना दौड पड़ी और वह पुल थस्थराने लगा, क्रांतिकारी इंटे। लखनभू का अक रास्ता अंग्रेजों के ताबे में आया, दुसरा मार्ग भी जीता गया, तीसरेपर दखल किया। अंग्रेजी सेना विनय के अन्माद में आगे बढती चली गयी। दिनभर कशम कश जारी रही और लहू की नहरें बहीं। तब आअटरामने किलेके बाहर ही रात काटने की सोची। किन्तु नहीं, वीर इवलॉक आराम का नाम तक नहीं जानता। रेसिडेन्सीमें असके भाभी प्रत्यक्ष काल के खुले जबड़े म पड़े हैं. पता नहीं वह कब बंद होगा ? अक रात अक युगशके समान होगी। अिसलिअ असने 'आगे बढो की आज्ञा दीकिन्तु अत्साह की अति में सेना किले का मार्ग चूक गयी और सीधे क्रांतिकारी तोपों के टप्पे में जा पहुंची। फिर भी नील आगे धुस ही रहा था । जब खास बाजार की तोरण के नीचे वह पहुंचा तब असने अपने घोडे को रोका; क्यों कि तोपखाना बहुन पिछड गया था। पीछे की ओर मुडकर देखा । क्या बढ़िया मौका है भारत के राष्ट्रीय बदले कातोरण के वीर! तुम मारे जाओगे तो भी चिंता नहीं किन्तु यह मौका न चूके । देखो । तोरण से अस सिपाहीने ठीक निशाना मारा; गोली नील की गर्दन से आरपार निकल गयी; नील घोडेसे घडाम से नीचे गिर पडा । मानव जातिके सौभाग्य से या दुर्भाग्यसे सारी गोरी सेनामें जितना शूर किन्तु जैसा-क्रूर, जितना ढीठ किन्तु अितना धीर,असा निरं किन्तु असा निर्दयी आदमी ढूँढकर भी मिलना दूभर है। किन्तु अग्रेजी सेना की यही विशेषता थी कि व्यक्ति के लिओ, चाहे फिर वह नील जैसा असाधारण भी क्यों न हो, अस का काम कभी अटकता . २३