पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९८

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अनिमलय] ३५४ [तीसरा खल न था । नील की मौत से वहाँ जरा भी गडबडी न पडी । आज्ञा के अनुसार अंग्रेजी सेना रेसिडेन्सी की ओर बढ़ रही थी। खास बाजार में अक नील का ही रक्त क्या, गोरों के खून का सैलाब भी बहता, तो भी निश्चय के अनुसार अंग्रेजी सेना आगे बढी ही चली जाती । जब वह बाजार से गुजर रही थी तब रेसिडेन्सी से निकलती हुश्री अभिनदन की हर्षवनि की चिल्लाहट सुनायी पड रही थी और अिधर से अंग्रेज असका साथ देते थे । सचमुच, इवलॉक ने अपने देशबंधुओं को मौत के जबडे से बाहर खींच लिया था । अस का विवरण अस समय अपस्थित कैप्टन विल्सन की लेखनी से यों लिखा गया है. "---पग पग पर गिरनेवाले सैनिकों से अंग्रेजों की संख्या घट रही थी, तो भी अंग्रेजी सेना रोसिडेन्सी को जा पहुंची और असे देखते ही घेरे में पड़े सब का संदेह और डर दूर हो गया। अपने छुटकारे के लिओ दौड आये हुओं पर अभिनंदनों तथा धन्यवादों की अन्हों ने वर्षा की। बीमार और घायल रुग्णालय से रेंगते रेंगते बाहर आये और अन के 'जय जय' चिलाने से सारा वायुमण्डल भर गया। अस स्थिति का वर्णन करना बहुत कठिन है । अपने पति की मत्युका समाचार जो पहले सुन कर दुखी हुी थीं वेही स्त्रियाँ अपने जीवित पति की कोड में छिपी हुी थीं और वे दपति ओक दूसरे को सुखी कर रहे थे। और जो स्त्री अपने प्यारे को अपनी भुजाओं में कसने के सपने देख रही थी, असे पहली बार और अन्तिम बार मालभ हुआ कि अब असे प्यारे को देखने का आशातंतु भी मृत्युने तोड डाला है।" लखन की रेसिडेन्सी में ८७ दिनतक की अविराम लडाओमें ७०० आदमी मरे । लगभग ५०० गोरे और ४०० हिंदी घायल हुआ या बच्चे रहे। और अनके मुक्तिदाता इवलॉक के ७२२ लोग, रेसिडेन्सी पहुंचने तक, खेत रहे थे । लखनअ की विजय के लिअ अितने सूरमाओं के प्राणों का मूल्य देना पडा था! किन्तु दुष्ट निराशे ! तुम सदाही अजेय रही हो । क्यों कि, हॅवलॉक ने क्रांतिकारियों की नाक में दम भले ही कर दिया, तुम असका पीछा नहीं