पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४०१

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अध्याय ५ वा] . ३५९ [लखन १४ नवबर की प्रतीक्षा बड़ी आतुरता से की जा रही थी। योजना थी, कि हॅवलॉक और आझुटराम रेसिडेन्सीसे बाहर आकर क्रांतिकारियों पर धावा बोल दें और दूसरी ओरसे कम्बल अन्हें दवाय । अिधर अग्रेनों की छावणी में १८५७ में नामवरी माप्त किये की सेनानी और योद्धा जमा थे। हॅवलॉक, आअटराम, पील [नौदल का प्रमुख ] ग्रेटहेड, दिछी से हाडसन, होपपँट, आयर और स्वय सेनापति कॅम्बेल वहाँ थे। अनके साथ ताजाइम हालिंडर सैनिक, घेरी हुी रेसिडेन्सीसे मैदान में कूदने को अत्सुक आयुटराम के गोरे सूरमा, देशद्रोही पंजाब-युवक और दिल्ली में भातृभूमि के खून से अबतक भीनी तलवारें संवारे अनसे भी अधिक 'वफादार । सिक्ख सिपाही थे। ___ यह सारा समूह १४ नवंबर को लखनअपरं चढ आया । दिनभर मुठभेडें हो रही थीं। शामतक अग्रेजी सेना दिलखुश बागतक घुस गयी थी। कॅम्बेल ने रातको वहीं पढाव डाला। क्रांतिकारियों ने रातभर हमले जारी रखे; किन्तु अंग्रेजी सेना वहीं टिकी रही। दूसरा दिन फिरसे व्यूहरचना करने में बिता कर १६ नबंबर को लखनअकी चढामी फिर शुरू की। तब तूफान की तरह आक्रमणकारी अंग्रेज सेना सिकंदर-बागपर टूट पड़ी। वागतक पहुंचने पर्यंत क्रातिकारियों ने विशेष प्रतिकार न किया। किन्तु अनके नेताने-वह चाहे जो हो-बहुत बॉके रणकौशल का परिचय दिया। जब श्रीवॉर्ड के हाभिलॅडर तथा , पॉवेल के सिक्ख भीषण गर्जना करते हुने सिकंदर बाग पर चढ़ आये तब मालूम होता था, जिस साहसी आक्रमण से क्रांतिकारियों का चकनाचूर हो जायगा। सूबेदार गोकुलसिंह अपनी तलवार हवामें फेंकते हुअ क्रांतिकारियों को पुकार रहा था, कि वे हाअिलंडर को किसी तरह आगे न बढने दे। अभागे लखन! अधिक से अधिक हिंदभू का खून कौन पीता है जिस की निर्दय होड में जोश में आकर सिक्त तथा हासिलेंडरों ने धूम मचायी थी। किन्तु सिकंदरबाग के गोल पत्यर टससे मस न हुआ। अन्हें भी जैसे तैसे तोड़कर देखा तो असके पीछे खडे सूरमा चप्पाभर भी पीछे न हटते थे। यहॉ तो सिक्ख और . हासिलेंडर पहले आगे बढ़ने की स्पर्धा कर रहे थे। आखिर एक छेद से आगे घुसनेवाला सिक्ख ही निकला ! जिस देशद्रोही की वीरता के बिनाम के रूप