पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४०२

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अमिमलय] ३६० [तीसरा खंड में एक गोली सॉय साँय करती आयी और अस की छाती के छेद गयी। असके गिरते ही कूपर अंदर घुसा और असके पीछे तुरन्त श्रीवार्ट, क. लॅप्सडेन, सिक्ख, हाअिलंडर, सब घुस पडे। भितनी फुनीसे अिन्हें घुसते देख क्षणभर के लिये सिपाही चौक पडे। किन्तु जिस धीरवरने अस दिन सिकंदर वाग की व्यूहरचना की थी वह पाँचवॉ वीर न था। पीछे इटने की कल्पना तक अकसे मन में न आने पाची। - ' जीतेंगे या मरेंगे! मर मिटेंगे या विजय पायेंगे ! ये शब्द अन्हीं के मुंह में फबते हैं जो स्वाधीनता के लिखे मैदान में कूदे हों। सबसे आगे कूपर था। अस का खात्मा करने का काम लुधियाने के विद्रोहियों के नेता के बिना कौन कर सकता था। कूपरपर नजर ताक कर वह सीधे असपर झपटा। खन्, खन्, खन्, तलवार से तलवार टकरायी। गहरे वार हुमे और दोनों धराशायी हुओ। लप्सडेन अपनी तलवार नचाते चिल्लाया, "देखते क्या हो, स्काटलंड की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिओ आगे बढो।" क्या गुस्ताखी ! कहता है स्काटलड की प्रतिष्ठा के लिओ! याने हिंदुंस्थान की कोअी प्रतिष्ठा है ही नहीं ! स्काटलंड की प्रतिष्ठा के नाम पर कोी आगे बढे, अिस के पहले ही एक क्रांतिकारी आगे बढा और लंप्सडेन के मृत शरीर से खून का फव्वारा अडने लगा। अिधर यह कचवावध जारी था, अधर दूसरी ओर परकोटा तोड कर अंग्रेज अंदर घुस पहे। वस, अब हमारी बाग के लिये विजय की आशा न रही। सिकंदर बाग ! क्या जीत न हो तब भी तुम झूझती रहोगी ? अवश्य; लडो, लडो, विजय हाथसे गयी तो परवाह नहीं, प्रतिष्ठा न जाय । माण जाय पर आन न जाय । कीतिमें कालिख न लगे ! कर्तव्य पर डट कर लडो। हर दरवाजे, हर चौराहे में तलवार से तलवार भिडी थी । रक्त के फव्वारे अड रहे थे। मलिसन कहता है “सिकंदर बाग की लडाभी रक्तरंजित और घमासान थी। विद्रोही निराशा के तेहे से लड रहे थे। इमारे सैनिक अंदर घुस पडे, जिससे लडाणी बंद न हुयी मेक अक कमरे, अक अक सीढी और बुर्ज के हर कोने के लिओ लडाी हुश्री और जेब आक्रमकों ने बाग पर कब्जा कर लिया तब अनके अिर्दगिर्द