पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४०६

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-- - A . . , अध्याय ६ चाँ तात्या टोपे जुलाी १६ को कानपुर में विद्रोहियों की हार होने पर श्रीमंत नानासाइब ब्रह्मावर्त को चले गये थे। १५ जलामी की रात को बिठर के राजमहल में आगामी योजनाओं पर चर्चा हुी और दूसरे ही दिन सवेरे अपने साथ छोटे भाजी बालासाहब, भतीजा रावसाहब, आज्ञाकारी तात्या टोपे, राजपरिवार की स्त्रियाँ, खजाना, और कुछ अन्नसामग्री लेकर, नानासाहब गंगा किनारे अन के लिये सुसज्न नावों की दिशा में चलते दिखायी दिये । फतहपुर जाने का अन का मिरादा था। वहाँ पहुँचने पर नानासाहब के परम स्नेही चौधरी भूपालसिंह ने अन का स्वागत कर अपने महल में खूब अच्छी तरह से रखा। हॅवलॉक जब कानपुर को घेरा डाल कर लखन पर चढ जाने की योजना बना रहा था, असी समय नानासाहब भी अपनी राजपरिषद में इवलॉक का सफल सामना करने के अपायों पर मशविरा कर रहे थे। और जैसी कठिन स्थिति में ठीक अपाय बताने की क्षमता रखनेवाला अकही असाधारण बुद्धि का व्यक्ति अस राजपरिषद में था। मानो अस की सूक्ष्म बुद्धि जैसी ही कूट- समस्याओं का इल निकालने के घात ही मे रहती थी ! अब तक तात्या टोपे ने मामूली मुनशी से अधिक काम नहीं किया था, अब तक नानासाहब के दरबार में दूसरा काम ही अस के लिओ क्या था?