पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४१०

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अमिमलय ] ३६८ [ तीसरा खड किसी भी सेना से श्रेष्ठ होती है, और अशियामी सेना को हराने का मिलान' है, बस, मेक जोरदार हमला किया जाय।' - "तुम चाहे जितने बलवान क्यों न हो, चढाी करने में तुमसे रंच भी हिचकिचाहट या हिलाओ हुभी तो ये अशियामी लोग झट अितराते हैं, अपने बल की आत्मविश्वासपूर्ण शेखी बघारते हैं और , अलटे, चढाथी कर बैठते हैं । अिस लिअ तुम निर्बल क्यों न हो, साहस के साथ पहले जोरदार हमला करो, ये अशियावाले हार की केवल आशंकासे दुम दवा कर भागेंगे और तितर बितर हो जायेंगे 1.---आज तक सभी अंग्रेज यही मानते आये थे । और सिसी विश्वास पर कभी बार अन्हों ने चढालियाँ की और बहुत बार वे विजयी भी हुमे। अब तो यह केवल विश्वास न हो कर अक नियमही बना था। " तुम्हारा संख्याबल आहे जो हो, किन्तु विजय चाहते हो तो मेक रामबाण अिलाज यही है कि अपने प्रतिपक्षी कों घबरा दो और धोखा दो।" हाँ, तब तो अशियाली सैनिकों के विशाल जमघट पर मुट्ठीभर अंग्रेजों को तीर की तरह टूट पड, विजय प्राप्त 'करनी' ही चाहिये । भारत में आनेवाले हर गोरे से यह नियम कंठस्थ कराया जाता और हर अंग्रेज ग्रंथकार यही नियम अपने ग्रंथ में विशेषरूपसे बखानता ।। जिस प्रकार की रणनीति तथा विश्वास में पले होने से तात्या की हलचलों को चुपचाप देखते रहना विडहम के लिये असम्भव था। तुरन्त वह कानपुर से निकला और कालपी के पास की नहर के पुलसे हो कर आगे बढ़ा। अिधर तात्या श्रीखंडीसे २५ नवबर को चलकर , पांडू नदीपर आ पहुँचा । शत्रु अितना नजदीक आ गया तब २६ ही को अंग्रेजोंने शियालियों के साथ बरते जानेवाले रामबाण उपाय को काम में लाने का निश्चय. किया । विदहमनें तीर की तरह चढामी शुरू की। क्रातिसेना जंगलमें छिपी बैठी थी, वहाँ से असने तोपें दागने का पारंभ किया। कडी कशमकश के बाद अंग्रेजोंने तात्या की तीन तोपें छीन ली और विंडहॅम का विश्वास दृढ हुआ. कि जोरदार चढामी से अशियामी इट जाता है। किन्तु, झाय, यह क्या हुआ,