पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४१६

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३७४ अग्निप्रलय] [तीसरा खंड सेना है यह देखकर भी असपर इमला कर असे खूब पीटा गया । अस समय बाओं पासे का नेतृत्व स्वयं नानासाहब कर रहे थे । मॅन्सफील्ड की कूर्मगति (धीमिचाल) से अन्हों ने अच्छा लाभ झुठाया । जब कॅम्बेल ने पूछा कि अवनक तात्या टोपे मैन्सफील्डने घेर लिया या नहीं, तब असे यही समाचार मिले कि मॅन्सफील्ड की लचर चाल से अस की सब आशाओं पर पानी फिर गया है। तात्या टोपे असके हाथ न लगा । कम्बल को बड़ा दुख हुआ। क्यों कि मराठा सेनानीने मॅन्सफील्ड को धकेलते हुमे ठेठ ब्रह्मावर्त तक खदेडा । अंग्रेजी सेना के मोर्चा के जालों को तोडकर अपनी सेना और तोपों के साथ वह छटक गया था। अस मराठा शेर को फँसाने के पहले अंग्रेजों को जैसे कमी जालों को बिछाना पड़ेगा। अपने सभी सैनिकों तथा तोपों के साथ, अस दिन, तात्या टोपे छटक गया, फिर भी होप Jट असका डटकर पीछा कर रहा था। दिनाक ९ दिसंबर को शिवराजपुर के पास दोनों की दौडती भिडन्त हुी और, यद्यपि तात्या अिस बार भी अंग्रेजों के हाथसे छटक गया, असे अपनी बहुतेरी तो छोड' देनी पड़ीं। जिस तरह ६ से ९ दिसंबर तक कम्बेल मे विडइम की हार का बदला लिया, क्रांतिकारियों की ३२ तोपें छीन ली, और अनके संगठन को तोड कुछ कालपी को तथा कुछ अयोध्या को भगाये गये । भितनी बड़ी विजय के बाद छोटी विजयो को तो असने अपनी मुट्ठी में माना । सो, वह ब्रह्मावर्त को गया, असे लूट लिया, नानासाहब के राजमहल को खंडहर बना • दिया और अपनी विजयपर कलसा चढ़ाने के लिअ अस स्थान के सभी मंदिरों को तोड़ दिया। ब्रह्मावर्त का राजमहल ! अिसी में भारतमाता के अत्यत तेजस्वी वीररत्न नानासाहब, तात्या टोपे, बालासाहब, रावसाहब और झाँसी की छबली पले थे । यही वइ राजमहल था जिसमें १८५७ के स्वातंत्र्य-समर की कल्पना का जन्म हुआ। ब्रह्मावर्त के मंदिरों ने अिस महान् साधना को आशीर्वाद दिया था। रायगढ का राजसिंहासन छिने जाने के बाद फिरसे जब वह जिसी राजमहल में