पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४१७

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अध्याय ६ वा] ३७५ [तात्या टोपे सजाया गया, जो फिरंगियों के रक्त के सैलाव से धोया गया था, वह राजमहल और वे मदिर दीपमालाओं से जगमगाये थे। जिस तेज ने अिन दीपों को जगमगाया था असी में आज वे जलकर खाक हो गये। पर अितिहास को अिस खाकपर मेक भी ऑसू गिराने की आवश्यकता नहीं है, क्यों कि अपनी साधना को पूरी करने के बाद ही यह महल,और ये मंदिर जल गये हैं । असी रचालियों का सर्वनाश ही अन सैंकडो' खडी अिमारतों-जो गुलामी को सहती है-की अपेक्षा हजार गुना प्रेरक, हजार गुना प्राण फूंकनेवाला होता है । क्यों कि, अिन अिमारतोंने स्वाधीनता को जन्म देने की चेष्टा की और असी में ये मर गयीं । स्वराज को प्रस्थापित करते हुओ मर जाना गुलामी में जीवित रहने की अपेक्षा कमी गुना लाभकारी है । यज्ञवेदी में जलनेवाली समिधा चिता में धधकनेवाली लकडी से इजारगुना प्रेरक है। -1 - - 35