पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२०

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अग्निप्रलय] ३७८ तीसरा खंड MAN क्या था ? अंग्रेजों ने अपनी तोरों की शक्ति का प्रदर्शन, अन वागियों को डराने के लिये, किया । किन्तु, मृत्यु का डर केवल साधारण जीवों को सताता है। स्वाधीनता की साधना से दिवाने बने तथा स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिमें मौत को गले लगानेवालों को डर क्या करेगा? विजय की आशा से लडनेवाला कभी जीवनाशासे डरेगा; कीति के लिये लडनेवाला भी शायद डरेगा, किन्तु सिरपर कफन बांधे जो समरांगण में डटा हो असे डर क्या करेगा, खाक ? असों के मार्ग में क्या सकावट आ सकती है ? आकाशसे गाज गिरे या वज्रपात हो, असे अपने मार्ग से कोसी बाधा विचलित नहीं कर सकती। क्यो कि, वह मौत ही का राही है, जिस से प्रकृति के कोपसे असका मन्तव्य तुरन्त पूरा होने में सहायता मिलती है ! जो मृत्यु को मिलने चला हो असे निराशा कैसे निराश कर पायगी ? अपनी मियतमा को मिलने के लिअ आतुर प्रेमी की तरह मौत को आलिंगन देने को अतावले बने अन अिटावे के देशभक्तों को कौन डरा सकता है ? और बिसी से जान बचाने की पूरी सुविधा होने पर भी, अस से लाभ न अठाते हुभे, विजय की रंच भी आशा न होते हु, अन्होंन अग्रेजी प्रबल सेना के सामने ताल ठोका । जो अंग्रेजी सेना दिल्ली की किलाबंदी, कानपुर के परकोटे, एवं लखन के घेरे से न रुक सकी वह अब अिस मामली घर के सामने अटक गयी। ____ मलेमन कहता है:--'गिनती में थोडे, हाथ में केवल बंदूकें थामे, निराश न हो कर भयंकर रणावेशसे चेते हु वे वीर अपने ध्येय की सिद्धि पर बलि चढने के लिअ निरधार से खडे थे। वॉलपोल ने मेक बार अस स्थान का निरीक्षण किया । अक सेना को रोकने की दृष्टिसे वह जगह बेकार थी। असे त्तोपों से अडाया जा सकता था। किन्तु कम से कम हानि के विचार से पहले हाथथमों को फेंका गया। अंदरवालों को घबडाने के लिये घास जला कर धुों से आकाश भर दिया; किन्तु व्यर्थ ! क्रांतिकारियों ने तीन घटों तक